हिंदू धर्म में देवी तारा दस महाविद्याओं में से दूसरी महाविद्या मानी जाती हैं। उन्हें तंत्र की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। देवी तारा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर और श्मशान स्थल पश्चिम बंगाल के तारापीठ में स्थित है। मां तारा के प्रमुख स्वरूप हैं — एकजटा, उग्रतारा और नीलसरस्वती। मां तारा नाम का अर्थ है ‘तारा’ = ‘तारने वाली’, अर्थात् तारण हार — जो जीवन में किसी प्रकार की कमी न रखे और इस जीवन के माया-जाल से पार करवा दे। देवी तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध — दोनों धर्मों में की जाती है।
शिमला का तारा देवी मंदिर – Tara Devi Temple, Shimla
शिमला का तारा देवी मंदिर मां तारा के वैष्णव रूप को समर्पित है। यहाँ पर किसी प्रकार की बलि प्रथा नहीं है। इस मंदिर की कहानी लगभग 255 साल पुरानी मानी जाती है। कहा जाता है कि एक बार राजा भूपेंद्र सेन शिकार के लिए जंगल में आए हुए थे। थकावट के कारण उन्होंने कुछ समय के लिए वहीं विश्राम किया। विश्राम के दौरान उन्हें स्वप्न में मां तारा के साथ-साथ भगवान हनुमान और भैरव जी के भी दर्शन हुए। स्वप्न में मां तारा ने उन्हें आदेश दिया कि इस स्थान पर उनका एक मंदिर स्थापित किया जाए, ताकि वे यहां के लोगों का उद्धार कर सकें। राजा भूपेंद्र सेन के पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी और उन पर मां का विशेष आशीर्वाद भी था।
स्वप्न के प्रभाव से प्रेरित होकर राजा ने मां तारा को समर्पित एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें देवी की एक सुंदर लकड़ी की मूर्ति स्थापित की गई।
कुछ वर्षों बाद राजा बलबीर सेन को एक स्वप्न आया, जिसमें मां तारा ने उन्हें आदेश दिया कि उनकी मूर्ति को तारव पर्वत की चोटी पर स्थापित किया जाए। राजा ने इस आदेश को तुरंत स्वीकार किया और अष्टधातु से बनी एक भव्य मूर्ति तैयार करवाई। फिर एक भव्य धार्मिक यात्रा के माध्यम से, उस मूर्ति को शंकर नामक हाथी पर विराजमान कर पहाड़ी की चोटी तक ले जाया गया और वहां विधिपूर्वक स्थापित किया गया। आज भी यह मंदिर उसी चोटी पर अपनी भव्यता के साथ विद्यमान है।
चार साल में तैयार हुआ नया तारा देवी मंदिर परिसर
तारा देवी मंदिर का पुनर्निर्माण वर्ष 2018 में पूरा हुआ, जिसमें लगभग 4 साल का समय और करीब 7 करोड़ रुपये का निवेश हुआ।। 2018 में मां तारा को उनके नए स्थान पर 90 पुजारियों के मंत्रोच्चार के साथ विधिवत विराजित किया गया। इस अवसर पर मां के दो अन्य स्वरूप मां सरस्वती और मां काली को भी साथ में स्थापित किया गया।
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तारा देवी मंदिर, का दर्शन समय – Tara Devi Temple Visiting Hours
सुबह 7:00 बजे से शाम 6:30 बजे तक खुला रहता है। हर रविवार को यहां भव्य भंडारे का आयोजन होता है, जिसे शिमला के प्रसिद्ध भंडारों में गिना जाता है। यदि कोई भक्त यहां भंडारा करवाना चाहे, तो उसे लगभग 4–5 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
तारा देवी मंदिर, शिमला कैसे पहुंचें – How to Reach Tara Devi Temple, Shimla?
सड़क मार्ग से (By Road) : तारा देवी मंदिर तक पहुँचने का सबसे आसान तरीका सड़क मार्ग है। सड़क शोघी बस स्टॉप से लगभग 100 मीटर आगे से शुरू होती है और सीधे मंदिर तक जाती है।
निजी वाहन से आने पर अनुभवी ड्राइवर को साथ लाएँ, क्योंकि रास्ता संकरा और घुमावदार है। छुट्टियों में यहाँ भीड़ और ट्रैफिक जाम हो सकता है।
हवाई मार्ग से (By Air) : शिमला में एक ही हवाई अड्डा है — जुब्बरहट्टी (Shimla Airport), जो तारा देवी मंदिर से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ट्रेन से (By Train): यदि आप ट्रेन से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो तारा देवी मंदिर तक का सफर टॉय ट्रेन के ज़रिए यादगार बन सकता है। कालका से शिमला तक चलने वाली यह ऐतिहासिक ट्रेन पहाड़ों और जंगलों के बीच से गुजरती है और तारा देवी स्टेशन के पास रुकती है, जो मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर है।
तारा देवी मंदिर के पास स्थित प्रमुख तीर्थ स्थल: Major Pilgrimage Sites Located Near Tara Devi Temple
- काली बाड़ी मंदिर
- संकट मोचन मंदिर
- जाखू मंदिर
- धिंगू माता (Dhingu Mata) मंदिर