क्या आप जानते हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जहाँ न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम भी श्रद्धा से सर झुकाते हैं? यह मंदिर हिंदुस्तान में नहीं बल्कि 97% मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान में स्थित है। जी हाँ, आपने सही सुना। आज हम जिस धार्मिक स्थल की बात कर रहे हैं, वह है हिंगलाज माता का मंदिर। यहाँ न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम भी आस्था रखते हैं और मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन से जीवन के सारे पाप और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
हिंगलाज माता का मंदिर – 51 शक्तिपीठों में से एक
हिंगलाज माता का मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंगोल नदी के तट पर स्थित है। इसे हिंदू धर्म के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहाँ पर माता सती का सिर गिरा था, जब भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर के साथ ब्रह्मांड में विचरण कर रहे थे और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के 51 टुकड़े किए थे। इसी कारण इसे शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है।
माता हिंगलाज का इतिहास
मान्यता के अनुसार, सतयुग में एक राक्षस राजा माता से अमरता का वरदान मांगने के लिए तपस्या कर रहा था। माता ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया, लेकिन अमरता देने में असमर्थ रहीं। इसके बाद राजा ने ऐसी मृत्यु मांगी जो अंधेरे में हो। राजा ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और अत्याचार करने लगा। तब माता ने अपनी आठ भुजाओं वाले रूप को बदलकर दो भुजाओं वाली सुंदर अप्सरा का रूप लिया और उसे मार गिराया। मरते समय राजा ने माता से प्रार्थना की कि इस स्थान को तीर्थस्थल का दर्जा मिले, जहाँ सभी धर्मों के लोग आकर अपनी मन्नतें मांग सकें। माता ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और तभी से यह स्थान हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया।
मुस्लिम आस्था और हिंगलाज माता
मुस्लिम समुदाय हिंगलाज माता को ‘नानी का हज’ और ‘नानी-ए-हजरत’ के नाम से पूजते हैं। यहाँ आने वाले मुसलमान श्रद्धालु लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती और इत्र चढ़ाते हैं। सूफी कवि शाह अब्दुल लतीफ भिट्टाई भी यहाँ आए थे और उन्होंने अपनी कविताओं में हिंगलाज माता की भक्ति का वर्णन किया है।
हिंगलाज यात्रा का महत्व
हिंगलाज यात्रा के दौरान श्रद्धालु 55 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं। यात्रा के दौरान श्रद्धालु बलूचिस्तान के चंद्रगुप ज्वालामुखी की भी पूजा करते हैं, जिसे भगवान शिव का रूप माना जाता है। इस तीर्थस्थल तक पहुँचने के लिए कराची से मकरान कोस्टल हाईवे द्वारा यात्रा की जा सकती है।
धार्मिक मान्यताएँ और इतिहास
कहते हैं भगवान राम ने भी रावण का वध करने के बाद यहाँ आकर अपने ब्रह्महत्या पाप का प्रायश्चित किया था। साथ ही परशुराम ने भी क्षत्रियों के वध के दौरान बचे हुए क्षत्रियों को यहाँ शरण दी थी। इसलिए हिंगलाज माता का यह स्थान पवित्र और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
हिंगलाज यात्रा कैसे करें
हिंगलाज माता का मंदिर कराची से लगभग 250-300 किलोमीटर की दूरी पर है। आप यहाँ निजी वाहन, टैक्सी या कराची से चलने वाली बस के माध्यम से पहुँच सकते हैं। यात्रा के दौरान कराची-मकरान कोस्टल हाईवे से होते हुए हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के रास्ते मंदिर तक जाया जा सकता है।
यात्रा का सर्वोत्तम समय
हिंगलाज यात्रा का सबसे अच्छा समय अप्रैल में होता है, जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। बलूचिस्तान का मौसम गर्म होता है, इसलिए सर्दियों में (नवंबर से मार्च) यात्रा करना बेहतर होता है। पर्याप्त पानी साथ लेकर चलें और अगर आप इस क्षेत्र से परिचित नहीं हैं, तो यात्रा समूह के साथ जाएं।