भीमाकाली मंदिर,(bhima kali temple) हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर के पास स्थित सराहन गाँव में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर देवी भीमाकाली को समर्पित है और पारंपरिक पहाड़ी स्थापत्य कला की खूबसूरती को दर्शाता है। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, दक्ष प्रजापति, जो सती के पिता थे, उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से आहत होकर सती ने हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए। भगवान शिव ने सती के शरीर को उठाकर तांडव करना शुरू कर दिया, जिससे सृष्टि संकट में पड़ गई।
तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों की स्थापना हुई। ऐसा माना जाता है कि सराहन में देवी का कान गिरा था, जहाँ आज भीमाकाली मंदिर स्थित है।
शोणितपुर और बाणासुर की कथा – The Legend of Shonitpur and Banasura
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान का प्राचीन नाम शोणितपुर था और यहाँ का शासक बाणासुर था, जो राजा बलि का पुत्र और भगवान शिव का परम भक्त था। त्रेता युग में रावण और बाणासुर के बीच लंबे समय तक संघर्ष चलता रहा, लेकिन रावण कभी बाणासुर को पराजित नहीं कर सका। देवताओं ने भी सौ वर्षों तक युद्ध किया, पर सफलता नहीं मिली।
अंततः सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव की शरण में पहुँचे, लेकिन बाणासुर शिव का भक्त था, इसलिए उन्होंने मदद से इनकार कर दिया और देवताओं को ब्रह्मा के पास भेजा। ब्रह्मा भी असमर्थ रहे। अंत में देवता भगवान विष्णु के पास पहुँचे।
विष्णु ने जब अपनी दृष्टि से पृथ्वी पर हो रहे अत्याचार देखे तो वे क्रोधित हो उठे। उनकी और देवताओं की आँखों से एक तेज़ प्रकाश निकला, जिससे एक शक्तिशाली देवी प्रकट हुईं। भगवान विष्णु ने उन्हें चक्र, भगवान शिव ने त्रिशूल, और अन्य देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियाँ उन्हें प्रदान कीं। इस शक्ति से युक्त देवी ने राक्षसों का अंत किया और यहीं विराजमान हो गईं।
भीमाकाली मंदिर का इतिहास और निर्माण – History and Architecture of Bhimakali Temple
भीमाकाली मंदिर का मूल अस्तित्व बहुत प्राचीन है। 1905 के भूकंप में पुराना मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। कहा जाता है कि वह मंदिर झुक गया था, लेकिन बाद में एक और झटके से वह चमत्कारिक रूप से सीधा हो गया। फिर 1927 में पुनर्निर्माण शुरू हुआ, और 1943 में वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा श्याम सिंह के शासनकाल में पूरा हुआ। 1962 में वर्तमान प्रतिमा की स्थापना की गई।
यह मंदिर काठ-कुनी शैली में निर्मित है, जिसमें पत्थर और देओदार लकड़ी का अद्भुत मिश्रण किया गया है। अंतिम शासक के रूप में वीरभद्र सिंह ने मंदिर का प्रतिनिधित्व किया, जो हिमाचल प्रदेश के आठ बार मुख्यमंत्री रहे है। यह मंदिर बुशहर राजवंश की कुलदेवी को समर्पित है और आज भी यहाँ राजसी परंपराओं के अनुसार पूजा होती है।
भीमाकाली मंदिर में देवी के दो स्वरूप – Two Forms of The Goddess In Bhimakali Temple
भीमा काली मंदिर एक अद्भुत दो-मंजिला संरचना है।
- ऊपरी मंजिल पर माँ भीमाकाली कन्या रूप में विराजमान हैं। उनकी मूर्ति एक सौम्य स्वरूप में है, जिसमें जीभ बाहर नहीं निकली हुई है। इस प्रतिमा के साथ भगवान बुद्ध समेत अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं। साथ ही कुछ लघु धातु की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं, जिनके विषय में स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मूर्तियाँ बुशहर राजपरिवार में विवाह कर आई रानी के कुलदेवताओं की हैं—जिन्हें माँ भीमाकाली ने अपने पावन मंदिर में स्थान दिया है।
- निचली मंजिल पर माँ पार्वती, अर्थात शिव-पत्नी के रूप में पूजित हैं।
यहाँ हर साल नवरात्रि, दशहरा, और अन्य पर्वों पर भव्य पूजा, हवन और राजसी परंपराओं के अनुसार बलिदान अनुष्ठान होते हैं।
भीमाकाली का रहस्यमयी मूल मंदिर जो आम जनता के लिए बंद रहता है ।
भीमाकाली मंदिर (bhima kali temple) परिसर में स्थित एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है, जिसे “मूल पीठ” कहा जाता है। इसकी पवित्रता और शक्ति इतनी विशिष्ट मानी जाती है कि इसे आम लोगों के लिए बंद रखा जाता है। यह केवल विशेष पूजा, बुशहर राजपरिवार के अनुष्ठानों या नवरात्रि जैसे पर्वों पर ही खोला जाता है।
मान्यता है कि इस मंदिर में देवी की ऊर्जा अत्यंत तीव्र है और बिना विधिवत अनुष्ठान के प्रवेश करना अनुचित माना जाता है। यही कारण है कि इसे खोलने की जिम्मेदारी केवल मुख्य पुजारी (राजपुजारी) या बुशहर राजवंश के उत्तराधिकारी, जैसे पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के सदस्यों को दी जाती है। आज भी यह परंपरा उनके वंशजों द्वारा मर्यादा के साथ निभाई जा रही है।
मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर तांत्रिक पूजा और विशेष गोपनीय अनुष्ठानों के लिए आरक्षित है। मान्यता है कि मंदिर के नीचे एक गुप्त सुरंग है, जो लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित रनविन गाँव से जुड़ती है। प्राचीन काल में पुजारी इसी मार्ग से मंदिर में प्रवेश करते थे।
क्यों कहलाईं भीमाकाली – Why is She Called Bhimakali ?
जब राक्षस बाणासुर और अन्य दैत्यों ने पृथ्वी पर आतंक मचाया और देवता असहाय हो गए, तब देवी प्रकट हुईं। उनका शरीर अत्यंत भीषण और रौद्र था। इस रूप में उन्होंने दैत्यों का संहार किया। इसी कारण उन्हें ‘भीमाकाली’ कहा गया — अर्थात् अत्यंत भीषण शक्ति और विशाल काय रूप वाली देवी काली।
भीमाकाली मंदिर में लगती थी अदालत – Court Was Held at Bhimakali Temple
स्थानीय लोगों का कहना है कि राजशाही काल में इस मंदिर परिसर में अदालतें लगती थीं। मान्यता है कि माँ भीमाकाली ने बुशहर राजपरिवार को प्रजा के कल्याण का वचन दिया था, और उसी वचन के पालन हेतु राजा इसी मंदिर प्रांगण में जनता की समस्याएँ सुनते थे।
राजा, माँ के आशीर्वाद से न्याय करते थे और लोगों की शिकायतों का समाधान किया जाता था।
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मंदिर प्रांगण में स्थित अन्य देवी-देवता – Other Deities Located in the Temple Premises
मंदिर परिसर में कई अन्य देवताओं के भी मंदिर स्थित हैं:
- लंकड़ा वीर मंदिर :लंकड़ा वीर को माँ भीमाकाली का रक्षक सेनापति माना जाता है।
- रघुनाथ जी मंदिर: यह मंदिर लगभग 850 साल पुराना माना जाता है और भगवान रघुनाथ को समर्पित है।
- भगवान नरसिंह: यह शिखर शैली का मंदिर भगवान नरसिंह को समर्पित है, जो उनकी आराधना का एक प्राचीन स्थल माना जाता है।
- हनुमान जी मंदिर:इस मंदिर में भगवान हनुमान की प्रतिमा लकड़ी की संरचना में विराजमान है।
भीमाकाली मंदिर कैसे पहुँचें – How To Reach Bhima Kali Temple
कार द्वारा (By Car): कार से यात्रा करते हुए भीमाकाली मंदिर, सराहन के मुख्य केंद्र से लगभग 5.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहाँ तक पहुंचने में जेओरी–सराहन रोड के माध्यम से लगभग 15 मिनट लगते हैं।
भीमाकाली मंदिर जाने का सर्वोत्तम समय -Best Time To Visit Bhima Kali Temple
भीमाकाली मंदिर की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय गर्मी का मौसम (अप्रैल से जुलाई) का है। बाकी समय, नवंबर से मार्च तक यहाँ पर अत्यधिक ठंड पड़ती है, जिससे यात्रा करना थोड़ा कठिन हो सकता है।
भीमाकाली मंदिर में ठहरने की सुविधा – Stay Options Near Bhimakali Temple
भीमाकाली मंदिर परिसर के पास श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए उचित व्यवस्थाएँ उपलब्ध हैं। मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाएं, जिनका शुल्क ₹500 से ₹1500 प्रति रात्रि है, और गेस्ट हाउस सुलभ दरों पर उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, सराहन कस्बे में कई होटल, होमस्टे और रिज़ॉर्ट भी मौजूद हैं।
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