Kamrunag

कमरूनाग मंदिर: रहस्यों से भरा एक दिव्य स्थल

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हिमाचल प्रदेश में स्थित कमरूनाग मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इसके पीछे कई रहस्यमयी और चमत्कारी कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के शेष नाग रूप में स्थित है और यहां की झील में इतना खजाना समाया हुआ है कि उसे गिन पाना असंभव माना जाता है। इस पवित्र स्थल से जुड़ी मान्यताएं, ऐतिहासिक कथाएं और आस्था से ओतप्रोत घटनाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं।

कमरूनाग मंदिर का स्थान और महत्व

यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 3,334 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। पत्थर और लकड़ी से निर्मित काठकुणी शैली में बना यह मंदिर देव कमरूनाग को समर्पित है, जिन्हें वर्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है।

यहां के लोग कमरूनाग देवता को न केवल एक धार्मिक देवता बल्कि अपने संरक्षक राजा के रूप में भी पूजते हैं। पुराने समय में स्थानीय शासक भी बिना देवता की अनुमति के कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लेते थे।

कमरूनाग झील और उसका रहस्य

मंदिर के समीप स्थित कमरूनाग झील कई रहस्यों से भरी हुई है। मान्यता है कि इस झील में अरबों का खजाना छिपा हुआ है, जिसे पांडवों ने छिपाया था और यह खजाना देवता को समर्पित किया गया था। इस झील में चढ़ावे के रूप में सोना, चांदी और अन्य कीमती धातुएं डाली जाती हैं, जिससे यह और भी समृद्ध होती गई।

मान्यता है कि इस खजाने की सुरक्षा स्वयं शेषनाग करते हैं और जो भी इसे चुराने की कोशिश करता है, उसे देवता का प्रकोप झेलना पड़ता है। इस झील की गहराई आज तक कोई नहीं माप सका है। कहा जाता है कि एक बार मंदिर के गुर ने इसमें छलांग लगाई थी और पाताल लोक तक पहुंचकर वहां से चावल लेकर लौटे थे।

कमरूनाग: वर्षा के देवता

कमरूनाग मंदिर में पंडितों द्वारा नहीं, बल्कि स्थानीय गुरों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। जब भी इलाके में बारिश नहीं होती, तो लोग देवता से प्रार्थना करने आते हैं। गुर द्वारा एक निर्धारित समय दिया जाता है और मान्यता है कि उस समय के भीतर बारिश हो जाती है। यदि बारिश नहीं होती, तो गुर को बदल दिया जाता है। यह परंपरा आज भी जारी है।

मंडी शिवरात्रि मेला और कमरूनाग देवता

मंडी के राजा जोगिंद्र सेन को एक बार दिल्ली दरबार में सर्वश्रेष्ठ राजा का सम्मान मिला था और इसकी कृपा देव कमरूनाग की वजह से मानी जाती है। तब से हर साल मंडी शिवरात्रि मेले में देवता की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। इस मेले के बिना देवता का आशीर्वाद अधूरा समझा जाता है।

कमरूनाग मेला

हर साल जून में यहाँ सारनाहुली मेले का आयोजन होता है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने पर झील में सोना-चांदी चढ़ाते हैं। इस समय मंदिर क्षेत्र में भारी भीड़ उमड़ती है और भक्तगण देवता के दर्शन कर धन्य महसूस करते हैं।

कैसे पहुंचे कमरूनाग मंदिर?

कमरूनाग झील और मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई सीधा सड़क मार्ग नहीं है। रोहांडा से लगभग 6-8 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसे पूरा करने में लगभग 3-4 घंटे लगते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर और हवाई अड्डा भुंतर है। दिल्ली से मंडी की दूरी लगभग 450 किमी और चंडीगढ़ से 200 किमी है।

निष्कर्ष

कमरूनाग झील और मंदिर न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि हमारी पौराणिक कथाएं और मान्यताएं कितनी गहरी और अद्भुत हैं। यहां आकर हर श्रद्धालु को दिव्य शांति और आस्था की अनुभूति होती है।

जय देवभूमि!

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