जरनैल सिंह भिंडरांवाले का नाम अक्सर खालिस्तान आंदोलन से जोड़ा जाता है पर क्या सच में भिंडरवाले को खालिस्तान चाहिए था? (Did Bhindranwale demand Khalistan?) उनके बड़े भाई हरजीत सिंह रोडे का दावा है कि भिंडरांवाले ने कभी खालिस्तान की सीधी मांग नहीं की थी। हरजीत सिंह के अनुसार, भिंडरांवाले का असली उद्देश्य 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को लागू करवाना था, जिसमें पंजाब को अधिक स्वायत्तता देने की बात थी। इस प्रस्ताव के अनुसार, भिंडरांवाले चाहते थे कि रक्षा, विदेश नीति, संचार, रेल, और मुद्रा को छोड़कर बाकी सभी विषय पंजाब के अधिकार क्षेत्र में हों।
हरजीत सिंह ने बताया कि अगर सरकार खुद से सिखों को खालिस्तान देना चाहती, तो भिंडरांवाले इसका विरोध नहीं करते। ऑपरेशन ब्लूस्टार और भिंडरांवाले की मृत्यु के बाद खालिस्तान की मांग को और बढ़ावा मिला। भिंडरांवाले के दूसरे भाई, कैप्टन हरचरण सिंह रोडे, जो सेना में थे, ने भी कहा कि भिंडरांवाले का मुख्य उद्देश्य आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का समर्थन और पंजाब की स्वायत्तता की मांग करना था।
भिंडरांवाले की दृष्टि: पंजाब के लिए एक अलग दृष्टिकोण
उनके भाई, हरजीत सिंह रोडे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि भिंडरांवाले का मुख्य उद्देश्य 1973 के आनंदपुर साहिब संकल्प को लागू कराना था, न कि खालिस्तान का गठन। हरजीत सिंह के मुताबिक, भिंडरांवाले का मानना था कि पंजाब को ज्यादा अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन खालिस्तान की मांग नहीं थी। उनका कहना था कि अगर सरकार खुद सिखों को खालिस्तान देना चाहती है, तो वे इसका विरोध नहीं करेंगे।
भिंडरांवाले का मानना था कि रक्षा, विदेश नीति, संचार, रेल और मुद्रा जैसे मामलों को छोड़कर, बाकी सभी विषयों पर पंजाब का अधिकार होना चाहिए।
आनंदपुर साहिब संकल्प (What was anandpur sahib resolution?)
भिंडरांवाले ने जो आनंदपुर साहिब संकल्प का समर्थन किया, वह पंजाब को अधिक अधिकार देने की बात करता था। इसका उद्देश्य था:
- पंजाब को अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए।
- सिख धर्म के धार्मिक अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा।
- जल संसाधनों और सीमाओं का नियंत्रण।
- सांस्कृतिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
भिंडरांवाले का मुख्य लक्ष्य खालिस्तान नहीं, बल्कि पंजाब को अपनी आंतरिक मामलों पर खुद निर्णय लेने का अधिकार देना था। रिपोर्ट्स के अनुसार, भिंडरांवाले ने पंजाबी भाषी क्षेत्रों को भी पंजाब में शामिल करने की बात की थी।
भिंडरांवाले और खालिस्तान आंदोलन
हालांकि भिंडरांवाले ने खालिस्तान की मांग नहीं की, उनकी बढ़ती लोकप्रियता और 1980 के दशक में पंजाब में बढ़ते हिंसा के कारण खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा मिला। भिंडरांवाले की मृत्यु और ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इस आंदोलन में तेजी आई, जिसके कारण खालिस्तान की मांग और भी मजबूत हुई।
जरनैल सिंह भिंडरांवाले: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Who was Bhindranwale?)
भिंडरांवाले का जन्म 2 जून 1947 को रोडे गांव में हुआ। वह दमदमी टकसाल के नेता बने और सिख अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगे। 13 अप्रैल 1978 को अकाली और निरंकारी कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प के बाद, जिसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए, भिंडरांवाले ने सिखों के अधिकारों को लेकर आक्रामक रुख अपनाया और इसके बाद उनकी भाषणों की लोकप्रियता बढ़ी।
1980 के दशक में पंजाब में हिंसा बढ़ने लगी, और 1981 में लाला जगत नारायण की हत्या और 1983 में डीआईजी एएस अटवाल की हत्या ने तनाव को और बढ़ा दिया। अंततः, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
क्या भिंडरांवाले ने सिखों के लिए अलग देश/Khalistan की मांग की थी? Did Bhindranwale demand Khalistan?
भिंडरांवाले से पहले ही, सिखों के लिए अलग देश की मांग उठने लगी थी। 1849 में सिख साम्राज्य की हार के बाद, पंजाब को अंग्रेजों के द्वारा कई हिस्सों में बांट दिया गया। पहले विश्व युद्ध और जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद, पंजाब में अंग्रेजों के खिलाफ गहरी नाराजगी फैलने लगी। 1930 के दशक में सिखों के बीच एक नया विचार उभरा—सिखों के लिए एक अलग होमलैंड की मांग।
इस विचार को सबसे पहले शिरोमणि अकाली दल ने प्रमुखता दी। 1940 में पाकिस्तान की मांग के बाद, अकाली दल ने भी सिखों के लिए अलग देश की मांग शुरू की। लेखक खुशवंत सिंह अपनी किताब ‘सिखों का इतिहास’ में लिखते हैं कि सिखों में हमेशा से अलग राज्य की कल्पना रही थी।
पंजाब मुद्दा और नया राज्य निर्माण
पाकिस्तान और भारत की स्वतंत्रता के बाद, अकाली दल ने भाषाई आधार पर पंजाब के विभाजन की मांग शुरू की, और 1953 में आंध्र प्रदेश के गठन के बाद उन्होंने पंजाबी भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग उठाई। यह मांग 1966 में पूरी हुई, जब पंजाब को भाषाई आधार पर विभाजित किया गया, और पंजाब और हरियाणा दो नए राज्य बने।
इससे यह साफ होता है कि खालिस्तान की मांग करने वाले भिंडरांवाले नहीं थे, बल्कि यह मांग कई दशकों से चली आ रही थी। भिंडरांवाले का उदय 1970 के दशक के मध्य में हुआ, जब उन्होंने दमदमी टकसाल की अध्यक्षता संभाली और सिख धर्म और संस्कृति के मुद्दों पर बोलना शुरू किया।
भिंडरांवाले का खालिस्तान आंदोलन से कनेक्शन
भिंडरांवाले ने खुद खालिस्तान की मांग नहीं की थी, लेकिन उनकी राजनीति और कार्यों ने खालिस्तान आंदोलन को और तेज किया। उनका उद्देश्य सिख धर्म, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करना था, लेकिन समय के साथ उनकी बयानबाजी और कार्यों ने उन्हें एक विवादास्पद नेता बना दिया।
निष्कर्ष
जरनैल सिंह भिंडरांवाले का इतिहास जटिल और विवादित है। भले ही उन्होंने सीधे तौर पर खालिस्तान की मांग नहीं की, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता और कार्यों ने खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा दिया। भिंडरांवाले की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने सिखों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की, लेकिन जिनकी विरासत आज भी एक विवादित और महत्वपूर्ण इतिहास के रूप में जानी जाती है।