माँ बगलामुखी, दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या ki devi हैं।

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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बंखंडी (bankhandi) गांव में स्थित माँ बगलामुखी का पीला मंदिर एक विशेष धार्मिक स्थल है। यह मंदिर धर्मशाला से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की अद्वितीयता उसकी पीली रंगत से है, जो यहाँ हर वस्तु में देखने को मिलती है, यहाँ तक कि पंखे भी पीले रंग के होते हैं।

माँ बगलामुखी का पीला रंग और धार्मिक महत्व

स्थानीय पुजारियों के अनुसार, माँ बगलामुखी का पसंदीदा रंग पीला है, जो उनकी उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि माँ की उत्पत्ति हल्दी के झील (gheel) से हुई थी, जिसके कारण उन्हें पीताम्बरी भी कहा जाता है। पीला रंग शुभता, पवित्रता और प्रचुरता का प्रतीक है, और इसलिए मंदिर में हर वस्तु, जैसे कि वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन भी पीले रंग के होते हैं।

शत्रुनाशिनी और वाकसिद्धि यज्ञ

माँ बगलामुखी मंदिर में शत्रुनाशिनी और वाकसिद्धि जैसे महत्वपूर्ण यज्ञ किए जाते हैं। शत्रुनाशिनी यज्ञ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसमें लाल मिर्च की आहुति डाली जाती है। यह यज्ञ शत्रुओं का नाश करने और विवादों को सुलझाने के लिए किया जाता है। वाकसिद्धि यज्ञ में वाक् सिद्धि, अर्थात् वाणी की शक्ति को बढ़ाने की प्रार्थना की जाती है।

प्राचीन कथा और ऐतिहासिक महत्व

माँ बगलामुखी का मंदिर महाभारत काल से पूर्व का माना जाता है और इसके निर्माण का श्रेय पांडवों को दिया जाता है। त्रेतायुग में भगवान राम ने हनुमान जी की प्रेरणा से बगलामुखी की मूर्ति की स्थापना की थी। तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार, माँ बगलामुखी तंत्रों की सबसे बड़ी देवी मानी जाती हैं।

मंदिर की विशेषताएँ

माँ बगलामुखी मंदिर की कई विशेषताएँ इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं। यहाँ देवी बगलामुखी एक स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं, जिनके स्तंभ विभिन्न रत्नों से सजाए गए हैं। उनकी तीन आंखें हैं, जो दर्शाती हैं कि वह भक्तों को परम ज्ञान प्रदान कर सकती हैं। मूर्ति के दाहिने और बाएँ ओर लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ भी हैं।

मंदिर का मुख्य द्वार और गर्भगृह विशेष रूप से आकर्षक हैं। देवी बगलामुखी की मूर्ति पीले वस्त्रों में अलंकृत है, और उनकी मुद्रा शत्रुनाश और तांत्रिक साधना का प्रतीक है। मंदिर का पुनर्निर्माण 1815 में किया गया था।

प्रमुख हस्तियाँ और उनके दर्शन

माँ बगलामुखी मंदिर में कई प्रमुख हस्तियाँ दर्शन कर चुकी हैं। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1977 में चुनावों में हार के बाद यहाँ तांत्रिक अनुष्ठान करवाया और फिर सत्ता में आईं। इसके बाद, वे 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पीएम मोदी के बड़े भाई प्रह्लाद मोदी, और कई अन्य हस्तियाँ भी यहाँ पूजा कर चुकी हैं।

इसके अलावा, नोट फॉर वोट मामले में फंसे सांसद अमर सिंह, सांसद जया प्रदा, मनविंदर सिंह बिट्टा, कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, भूपेंद्र हुड्डा, राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर, गोविंदा और गुरदास मान जैसी हस्तियाँ भी इस मंदिर में आ चुकी हैं। मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ ने अपनी पत्नी कोबिता के साथ तांत्रिक पूजा और हवन करवाया।

माँ बगलामुखी की शक्ति और स्वरूप

माँ बगलामुखी को तंत्रों की सबसे बड़ी देवी माना जाता है। उन्हें ‘पीताम्बरा’ के रूप में भी जाना जाता है, जो पीले रंग के वस्त्रों, फूलों और सामग्री से संबंधित है। उनका रूप अत्यंत चमत्कारिक है, जिसमें वे दाहिने हाथ में गदा और एक राक्षस की जीभ पकड़े हुए दर्शाई जाती हैं। बगुला पक्षी का रूप धारण किए हुए माँ शत्रुओं को नियंत्रित करने की शक्ति को दर्शाती हैं।

कथाएँ और उत्पत्ति

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, सत्य युग में एक भयंकर तूफान ने सृष्टि को नष्ट करना शुरू कर दिया। इस स्थिति से चिंतित होकर भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर (हल्दी की झील) के तट पर देवी पार्वती की तपस्या की। देवी पार्वती ने अपने एक रूप, बगलामुखी को झील से प्रकट किया और तूफान को शांत किया।

मदन राक्षस की कथा

एक कथा में बताया गया है कि मदन नामक राक्षस ने वाक-सिद्धि प्राप्त की थी, जिसके द्वारा वह जो कुछ भी कहता था, वह सच हो जाता था। उसने इस शक्ति का दुरुपयोग मनुष्यों को परेशान करने और लोगों की हत्या करने के लिए किया। देवताओं ने माँ बगलामुखी से प्रार्थना की। देवी ने राक्षस की जीभ पकड़ ली और उसकी शक्ति को स्थिर कर दिया। मदन ने देवी से अनुरोध किया कि उसकी पूजा उनके साथ की जाए; देवी ने उसे मारने से पहले यह वरदान दिया।

दस महाविद्याएँ

प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है, जिनमें माँ बगलामुखी भी एक हैं। ये दस महाविद्याएँ हिंदू धर्म की दस प्रमुख देवी हैं, और प्रत्येक का अपना विशिष्ट स्वरूप, महत्व और पूजा विधि होती है।

  1. काली (Kali) – उग्र रूप में दर्शाई जाती हैं।
  2. तारा (Tara) – नीले रंग की और चार भुजाओं में अस्त्र धारण करती हैं।
  3. षोडशी (Shodashi) या त्रिपुरसुंदरी (Tripurasundari) – सोलह वर्ष की युवती के रूप में दर्शाई जाती हैं, सौंदर्य, प्रेम और ऐश्वर्य की देवी।
  4. भुवनेश्वरी (Bhuvaneshwari) – चार भुजाओं वाली और ब्रह्मांड की अधीश्वरी मानी जाती हैं।
  5. छिन्नमस्ता (Chhinnamasta) – स्वयं का कटा हुआ सिर धारण करती हैं, और गले से रक्त की धाराएं बहती हैं।
  6. भैरवी (Bhairavi) – उग्र रूप में और तांत्रिक साधना की देवी मानी जाती हैं।
  7. धूमावती (Dhumavati) – वृद्धा और विधवा के रूप में दर्शाई जाती हैं।
  8. बगलामुखी (Baglamukhi) – पीले रंग की और शत्रुनाश की शक्ति की देवी।
  9. मातंगी (Matangi) – हरे रंग की और संगीत, कला और ज्ञान की देवी।
  10. कमला (Kamala) – लक्ष्मी का तांत्रिक रूप, कमल पर विराजमान।

माँ बगलामुखी का मंदिर कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में एक अनूठा और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसकी पीली रंगत, ऐतिहासिक महत्व, और तांत्रिक पूजा विधियाँ इसे विशेष बनाती हैं। यहाँ की पूजा और यज्ञ भक्तों को शत्रुओं पर विजय, वाणी की शक्ति, और जीवन में सफलता प्रदान करने में मदद करते हैं। इस प्रकार, माँ बगलामुखी का मंदिर एक शक्तिशाली और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, जो अपने अद्वितीय स्वरूप और शक्ति के लिए जाना जाता है।

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