नागा साधुओं की उत्पत्ति ||  महिला नागा साधु || कुंभ के बाद कहां जाते हैं ?

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हर 12 साल में आयोजित होने वाला कुंभ मेला, केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा रहस्यमय महासंगम है जो चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—को दिव्यता से आलोकित कर देता है। इस अद्भुत आयोजन में करोड़ों श्रद्धालु जुटते हैं, लेकिन इस महासंगम में सबसे रहस्यमयी नागा साधु। होते हैं लेकिन क्या आपको नागा साधुओं की कहानी पता है, कि कैसे इनकी उत्पत्ति हुई? पुरुष नागा साधु नहीं, बल्कि महिला नागा साधु भी होती हैं। और क्या वे कपड़े पहनती हैं, और कैसे वे पुरुष साधुओं से अलग होती हैं? मरने से पहले ही खुद का पिंडदान क्यों? एक और सवाल जो आपके मन में कई बार आया होगा, कि कुम्भ के समय तो हम नागा साधुओं के बारे में सुनते हैं, उसके बाद वे अचानक गायब हो जाते हैं। आखिर वे कहाँ चले जाते हैं और क्यों? इन सब सवालों के जवाब आपको मिलेंगे, आपको बस वीडियो पूरा देखना होगा। चलिए, शुरू करते हैं…

नागा साधु—जो अपने नग्न, भस्म से सने शरीर और गहन तपस्वी दृष्टि से हर किसी का ध्यान खींच लेते हैं। ये साधु, मानो सांसारिकता से परे कोई और ही लोक के प्राणी हों। उनकी शांत लेकिन शक्तिशाली उपस्थिति, उनके कठोर जीवन और अज्ञात साधना के रहस्यों से लिपटी होती है। ये केवल साधु नहीं, बल्कि उन अखाड़ों के रक्षक हैं, जहां रहस्य, परंपरा, और तप का ऐसा संगम होता है जिसे समझ पाना साधारण व्यक्ति के लिए असंभव है।

नागा साधुओं की उत्पत्ति

किसने बनाया था नागा साधुओं को ? 

ऐसा माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने नागा साधुओं को तैयार किया था. शंकराचार्य ने नागा साधुओं को धर्म की रक्षा के लिए भेजा था. शंकर का जन्म 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की।

आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें  हजारo  ज्नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।

नागा साधू बनने की प्रक्रिया

नागा साधु बनना केवल एक निर्णय नहीं, बल्कि एक गहन और परिवर्तनकारी यात्रा है, जिसमें अत्यधिक समर्पण और अनुशासन की आवश्यकता होती है। प्राचीन हिंदू परंपराओं में निहित यह प्रक्रिया मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर कठोर परीक्षाओं की मांग करती है। नागा साधु बनने का मार्ग इस प्रकार है:

प्रारंभिक चरण

इस यात्रा की शुरुआत कठिन चयन प्रक्रिया और “ब्रह्मचर्य” (संयम और आध्यात्मिक अनुशासन) के पालन से होती है। यह प्रारंभिक चरण कमजोर इच्छाशक्ति वालों के लिए नहीं है। इच्छुक साधुओं को अखाड़ा (धार्मिक संस्था) द्वारा गहन मूल्यांकन से गुजरना पड़ता है। यह मूल्यांकन उनकी त्यागमय जीवन जीने की क्षमता और समर्पण की जांच करता है।
इस परीक्षा की अवधि कभी-कभी 12 वर्षों तक बढ़ जाती है, जिसमें इच्छुक साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और सांसारिक सुखों से पूरी तरह दूर रहते हैं।

पंच गुरु और पिंडदान

प्रारंभिक चरण सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, साधु बनने के इच्छुक व्यक्ति “पंच गुरु” और “पिंडदान” की प्रक्रिया से गुजरते हैं। जब गुरु उन्हें तैयार मानते हैं, तो वे पांच आध्यात्मिक गुरुओं (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) से परिचित कराए जाते हैं, जो उन्हें मार्गदर्शन देते हैं।
इसके बाद, इच्छुक व्यक्ति स्वयं का “पिंडदान” करता है, जो सामान्यतः पूर्वजों के लिए किया जाने वाला संस्कार है। यह अनुष्ठान उनके पुराने जीवन और सामाजिक संबंधों को त्यागने का प्रतीक है, जो उन्हें आध्यात्मिक पुनर्जन्म की ओर ले जाता है।

अंतिम चरण

अंतिम चरण में “लिंग की शुद्धि” की प्रक्रिया होती है। साधु बनने वाला व्यक्ति अखाड़े के ध्वज के नीचे 24 घंटे उपवास करता है। यह उनके नए जीवन के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है। इन अनुष्ठानों के बाद, उन्हें आधिकारिक रूप से नागा साधु के रूप में स्वीकार किया जाता है, और वे एक तपस्वी जीवन को पूरी तरह अपनाते हैं।

नागा साधु जीवन के नियम

नागा साधु अपने कठोर आध्यात्मिक अनुशासन के लिए विख्यात हैं। इस जीवन में प्रवेश के बाद, वे कठिन नियमों का पालन करते हैं, जो तप और त्याग से भरे होते हैं।

  • ब्रह्मचर्य का पालन: नागा साधु आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, जो उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा और ध्यान को केंद्रित रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • वस्त्र त्याग: नागा साधु वस्त्र नहीं पहनते। उनका नग्न शरीर भौतिक मोह और सामाजिक बंधनों के त्याग का प्रतीक है।
  • जटा या मुंडन: नागा साधु अपने बालों को या तो लंबी जटाओं के रूप में रखते हैं या पूरी तरह मुंडन कर लेते हैं। यह उनकी आध्यात्मिक यात्रा का व्यक्तिगत प्रतीक है।
  • भिक्षा पर निर्भरता: उनका भोजन केवल भिक्षा पर निर्भर होता है। वे सात घरों से भिक्षा मांग सकते हैं, और यदि भिक्षा न मिले, तो भूख सहन करते हैं।
  • सादगी और अनुशासन: साधु जमीन पर सोते हैं और किसी भी प्रकार की विलासिता से दूर रहते हैं।

महिला नागा साधु : क्या महिला नागा साधु कपड़े पहनती हैं ?

 महाकुंभ, जहां पूरी दुनिया जुड़ती है, इस बार भी महिला नागा साधुओं की महा ताकत को देखने का अवसर मिलेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं नागा साधु आखिर कैसे बनती हैं? उनकी महिमा और महा ताकत का रहस्य क्या है?

नागा साधुओं को तो आपने अक्सर देखा होगा, लेकिन क्या कभी किसी महिला नागा साधु को देखा है? ज्यादातर लोगों का जवाब होगा—नहीं। ऐसा क्यों है कि महिला नागा साधु इतनी दुर्लभ हैं और केवल महाकुंभ में ही नजर आती हैं?

महिला नागा साधुओं की दुनिया रहस्यमयी है। वे कहां रहती हैं, क्यों आमतौर पर दिखाई नहीं देतीं, और उनके बिना महाकुंभ अधूरा क्यों लगता है—इन सभी सवालों के जवाब हम आपको देंगे। लेकिन इससे पहले, यह जानना जरूरी है कि आखिर महिलाएं नागा साधु बनती कैसे हैं? क्या हर कोई महिला नागा साधु बन सकती है?  क्या अगर ईश्वर के प्रति भगवान के प्रति एक आस्था जग जाए तो यूं ही नागा साधु बना जा सकता है?

यह प्रक्रिया सचमुच बहुत ही चुनौतीपूर्ण और चौंकाने वाली होती है। तो चलिए, हम आपको बताते हैं विस्तार से कि आखिर महिला नागा साधु कैसे बनती हैं। लेकिन उससे पहले, कुछ और दिलचस्प तथ्य भी जान लेते हैं।

जैसे पुरुष नागा साधु होते हैं, ठीक उसी तरह महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं। महिला नागा साधु बनना उतना सरल नहीं होता जितना कि लगता है।

कहा जाता है कि महिला नागा साधु बनने की यात्रा बहुत कठिन और जटिल होती है। महिला नागा साधु बाहरी दुनिया में बहुत ही कम दिखाई देती हैं महिला नागा साधु दरअसल जंगलों और अखाड़ों में रहती हैं 

यह कई सालों तक कठिन तपस्या करती है, सांसारिक मोहमाया जो है उसका त्याग करना पड़ता है, kai saalon tak ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है 

 जो महिला ऐसा करने में सफलता प्राप्त कर लेती है कामयाब हो जाती है अपने मन पर काबू पा लेती है अपनी काम वासना पर पूरी तरह से काबू पा लेती है तो उसे गुरुओं की ओर से नागा साधु बनने की अनुमति मिल जाती है

जो महिला नागा साधु बनती है, उसके पिछले जीवन की पूरी जानकारी भी ली जाती है। यह नहीं होता कि बस किसी के मन में नागा साधु बनने की इच्छा जागी और वह बन गई। इसके लिए उसकी पूरी जीवन यात्रा, उसकी परवरिश, और उसके पारिवारिक संबंधों की पूरी जानकारी एकत्रित की जाती है।

इसके अलावा, महिला नागा साधु बनने वाली को अपने गुरुओं के सामने अपनी योग्यता का विश्वास भी दिलाना पड़ता है। उन्हें यह साबित करना होता है कि वे इस कठिन राह को अपनाने के योग्य हैं और उनका समर्पण और तप सही दिशा में है।

महिला नागा साधु: ज़िंदा रहकर भी खुद का पिंड दान क्यों ? 

 नागा एक विशिष्ट पदवी होती है, जो केवल वैष्णव, शैव और उदासीन अखाड़ों से जुड़ी होती है। ये अखाड़े ही नागा साधुओं के होते हैं। और एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि महिला नागा साधु को अपना पिंडदान जीवन के दौरान ही करना पड़ता है।

महिला नागा साधु तभी बन पाती हैं पहले अपना उन उन्हें सिर मुंडवा दिया जा है यानी कि पहला जो होता है सबसे पहले उनके बालों को कटवा दिया जाता है क्योंकि कहते हैं ना कि एक महिला का सबसे बड़ा आभूषण उसके बाल होते हैं इसलिए सबसे पहले इस मोह को त्यागा जाता है 

नागा साधु बनने का सबसे महत्वपूर्ण चरण है पिंडदान। महिला नागा साधु बनने के लिए, जीवन में एक अहम समय पर महिला se bhi अपना पिंडदान कराया जाता है। इसका मतलब है कि उसे पूरी तरह से सांसारिक मोह-माया से मुक्त होना पड़ता है। पिंडदान के बाद, महिला अपने पिछले जीवन से मुक्त हो जाती है और तब वह यह स्वीकार करती है कि अब उसका जीवन आध्यात्मिक यात्रा पर है। अब से, उसका समग्र जीवन परमात्मा के चरणों में समर्पित होगा, और वह केवल परमात्मा के लिए जीएगी, उनकी भक्ति में पूरी तरह से लीन हो जाएगी।

क्या महिला नागा साधु कपडे पहनती है ?

महिला नागा साधु के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें हैं। जबकि नागा साधु आमतौर पर नग्न रहते हैं, महिला नागा साधु गेरुआ वस्त्र पहनती हैं, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह वस्त्र बिना सिले होते हैं, और इसे पहनने की विशेष अनुमति केवल महिला नागा साधुओं को ही मिलती है। आम लोग जो कपड़े पहनते हैं, वे सिले होते हैं और हम उन्हें अपनी पसंद के हिसाब से बदल सकते हैं, लेकिन महिला नागा साधु कभी सिले हुए कपड़े नहीं पहनतीं। इसके अलावा, महिला नागा साधु के माथे पर तिलक होता है, और वे अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे पुरुष नागा साधु करते हैं। हालांकि, उनके स्नान की प्रक्रिया पुरुषों से अलग होती है। महिला नागा साधु एक बेहद सादा और तपस्वी जीवन जीती हैं, जो पूरी तरह से भक्ति और साधना में समर्पित होता है।

कुंभ के बाद कहां जाते हैं नागा साधु?

माना जाता है कि कुंभ समाप्त होने के बाद, ये साधु जंगलों की गहराइयों में चले जाते हैं। वहां वे साधना और आध्यात्मिक साधनों में लीन हो जाते हैं। इनका यात्रा क्रम आमतौर पर रात के अंधेरे में शुरू होता है, जिससे वे गांवों और शहरों से गुजरते हुए किसी की नजर में न आएं।

नागा साधुओं के हर समूह (अखाड़ा) का एक कोतवाल होता है, जो साधुओं और अखाड़ों के बीच संपर्क बनाए रखता है। जब ये साधु गुफाओं में निवास करते हैं, तब कोतवाल उनकी जरूरतों और संदेशों को अखाड़े तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 नागा साधु ज्यादातर समय अपने-अपने अखाड़ों में रहते हैं। देश में कई अखाड़े हैं, जो इन साधुओं निवास स्थान होते हैं। ये अखाड़े देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं, जैसे हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। नागा साधु एकांतवास में रहना पसंद करते हैं। वे अक्सर पहाड़, जंगलों, और गुफाओं जैसे शांत और निर्जन स्थानों पर ध्यान और साधना में समय बिताते हैं।

नागा साधुओं की दुनिया रहस्यों और तप की एक गहरी यात्रा है, जो न केवल आध्यात्मिक, बल्कि शारीरिक और मानसिक धैर्य की भी परीक्षा लेती है। ये साधु हमें यह सिखाते हैं कि सत्य और ज्ञान की प्राप्ति के लिए त्याग और तपस्या आवश्यक हैं। तो अगली बार जब आप महाकुंभ या नागा साधुओं के बारे में सोचें, तो इनकी साधना की गहराई और बलिदान को समझने की कोशिश करें।

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