Manimahesh Kailash

मणिमहेश कैलाश पर्वत: रहस्य, पौराणिक कथाएँ और अजेय चोटी की यात्रा

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मणिमहेश कैलाश पर्वत हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के भरमौर उपखंड में स्थित है। इस कैलाश पर्वत पर शिवलिंग के आकार की एक चट्टान को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। यह स्थल समुद्र तल से लगभग 5,653 मीटर (18,547 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।  धौलाधार, पांगी और ज़ांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है। मणिमहेश-कैलाश पर्वत की यात्रा को अमरनाथ यात्रा के बराबर माना गया है। जो लोग अमरनाथ नहीं जा पाते, वे मणिमहेश झील में पवित्र स्नान करने आते हैं।

मणिमहेश झील इस पवित्र स्थल का प्रमुख आकर्षण है। यह झील चोटी के आधार पर स्थित है और लगभग 4,080 मीटर की ऊँचाई पर है। झील का आकार अंडाकार है, और इसका पानी ठंडा और साफ होता है। यह झील हिमालय की बर्फीली चोटियों से घिरी हुई है और गर्मियों में भी यहाँ बर्फ देखी जा सकती है।

मणिमहेश झील तक पहुँचने की एक धार्मिक यात्रा है। हर साल जन्माष्टमी से  राधा अष्टमी तक, हजारों श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा में हिस्सा लेते हैं। यह यात्रा तीन दिनों में पूरी होती है, जिसमें 13 किलोमीटर की दूरी पैदल तय की जाती है। मनिमहेश यात्रा की वास्तविक ट्रेकिंग की शुरुआत हडसर से होती है। हालांकि, पारंपरिक और सांकेतिक रूप से यात्रा की शुरुआत के लक्ष्मी नारायण मंदिर चंबा और दशनामी अखाड़ा से होती है, जहाँ से पवित्र छड़ी को लेकर जुलूस निकाला जाता है।

इस पवित्र यात्रा में तीर्थयात्री और साधु नंगे पांव हडसर से 14 किलोमीटर की दूरी तय कर मनिमहेश झील तक पहुँचते हैं। भगवान शिव इस यात्रा के अध्यक्ष देवता हैं, और ‘छड़ी’ की शोभायात्रा भजनों और गीतों के साथ होती है। हडसर से यात्रा दो दिन की होती है, जिसमें धन्छो में एक रात ठहरते हैं। झील पर पहुँचने के बाद, पूरी रात समारोह होते हैं, और अगले दिन तीर्थयात्री झील में पवित्र डुबकी लगाते हैं। महिलाएँ गौरी कुंड में और पुरुष शिव करोतरी में स्नान करते हैं, जो पवित्र स्थलों के रूप में माने जाते हैं। भर्मौर ब्राह्मण परिवार के पुजारी झील के सभी मंदिरों में पूजा करते हैं।

मणिमहेश कैलाश पर्वत का इतिहास


मणिमहेश नाम का महत्व

मनिमाहेश” नाम दो शब्दों से बना है: “मणि,” जिसका मतलब है रत्न, और “महेश,” जो भगवान शिव का एक नाम है। मान्यता है कि भगवान शिव की मुकुट पर रखा रत्न यहाँ गिर गया था, इसलिए इसका नाम मनिमाहेश पड़ा। मान्यता है कि भगवान शिव के मुकुट पर स्थित मणि यहाँ से चमकती है। जब सूर्य की किरणें पर्वत की चोटी पर पड़ती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि चोटी पर एक चमकदार मणि है। यही कारण है कि इसे “मणिमहेश” नाम दिया गया है। इस मणि का अद्वितीय तेज और चमक भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।

पौराणिक गठन

मणिमहेश पर्वत और इसके आधार पर स्थित अंडाकार झील के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह पर्वत आदि काल से है, और भगवान शिव ने स्वयं मणिमहेश की रचना की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया, तब उन्होंने इस पवित्र स्थल का निर्माण किया था। यहाँ माता पार्वती को “माता गिरिजा” के रूप में पूजा जाता है, और भक्तजन इस स्थान को अत्यंत श्रद्धा से निहारते हैं।

मणिमहेश के बारे में एक प्रमुख लोक मान्यता है कि भगवान शिव मणिमहेश कैलाश में निवास करते हैं, और पर्वत की चोटी पर स्थित शिवलिंग जैसी शिला संरचना भगवान शिव का प्रकट रूप मानी जाती है। भक्तों का मानना है कि इस शिला में शिव की दिव्यता और शक्ति समाहित है, और यहाँ आकर उन्हें अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है।

हर साल भादों के महीने में, अमावस्या की आठवीं तिथि को मणिमहेश झील के परिसर में मेला लगता है। इस मेले में आसपास के गाँवों और क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं, जो इस पर्वत और झील की धार्मिक महत्ता को नमन करने के लिए एकत्र होते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संगम का भी प्रतीक है।

मणिमहेश कैलाशपर्वत: एक अनछुई और पवित्र चोटी

मणिमहेश कैलाश को एक अद्वितीय और पवित्र पर्वत माना जाता है, जिसे आज तक कोई भी नहीं चढ़ पाया है। जहां माउंट एवरेस्ट जैसी ऊँची चोटियों पर मानव सफलता के निशान हैं, वहीं मणिमहेश कैलाश को अभी भी एक अनछुई, “वर्जिन” चोटी के रूप में जाना जाता है।

1968 में, नंदिनी पटेल के नेतृत्व में एक इंडो-जापानी टीम ने इस चोटी पर चढ़ने का प्रयास किया था, लेकिन यह अभियान असफल रहा। कहा जाता है कि इस असफलता का कारण चोटी की दिव्य शक्ति थी, जो किसी को भी इसके शिखर तक पहुंचने से रोकती है।

स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, गद्दी जनजाति के एक चरवाहे ने अपनी भेड़ों के साथ इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वे सभी पत्थर में बदल गए। मुख्य शिखर के पास मौजूद छोटे-छोटे शिखरों को उस चरवाहे और उसकी भेड़ों के अवशेष माना जाता है। यह कहानी इस पर्वत की रहस्यमयी और पवित्रता की ओर इशारा करती है, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाती है।

ऐसा माना जाता है कि एक बार गद्दी ने सपने में भगवान शिव को शिखर पर बुलाते हुए देखा और भगवान शिव ने उसे हर कदम पर भेड़ों को काटने के लिए कहा, लेकिन पीछे मुड़कर न देखने के लिए कहा। वह शिखर पर चढ़ने लगा और एक के बाद एक सीढ़ियाँ चढ़ता गया और वह अपने साथ ले जा रहे मेमनों को काटता रहा। लेकिन शिखर पर पहुँचने से कुछ कदम पहले, वह भ्रमित हो गया कि उसके पास अधिक भेड़ें नहीं हैं, उसने उन्हें मार दिया और वापस लौट आया। जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा, वह पत्थर में बदल गया और चढ़ नहीं सका। तब से, किसी ने भी इस शिखर पर चढ़ने की कोशिश नहीं की और इस प्रकार यह एक अजेय चोटी है।

ऐसी एक और कहानी है कि जब एक साँप ने भी इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी असफल रहा और पत्थर में बदल गया। भक्तों का मानना है कि इस शिखर को तभी देखा जा सकता है जब भगवान शिव चाहें। शिखर पर बादलों का घिरना भी भगवान की नाराजगी का संकेत माना जाता है। और ऐसे कौन से कारण हो सकते हैं जिन्होंने इस पर्वत को अब तक अजेय बना रखा है?

मणिमहेश पर्वत: अजेय चोटी के पीछे के कारण

मणिमहेश पर्वत की चोटी तक चढ़ने के लिए कई कारणों को एक साथ मानना मुश्किल है। इसके पीछे कई धार्मिक आस्थाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं:

  • धार्मिक आस्था और विश्वास – मणिमहेश पर्वत को धार्मिक रूप से भगवान शिव का निवास माना जाता है। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि इस पर्वत की चोटी तक पहुंचने का प्रयास करना भगवान शिव की आस्था के विरुद्ध है। इसे अपवित्र और अनुचित माना जाता है, और इसलिए लोग इस पर्वत की चोटी तक चढ़ने से बचते हैं।
  • कठिन भूगोल और मौसम – मणिमहेश पर्वत की भूगोलिक संरचना अत्यंत दुर्गम है। पर्वत पर चढ़ाई करना शारीरिक रूप से बहुत कठिन है, और इसके रास्ते बहुत ही खतरनाक हैं। इसके अलावा, ऊंचाई और मौसम की कठिनाइयों, जैसे कि बर्फबारी, तेज हवाएं, और ऑक्सीजन की कमी, चढ़ाई को और भी चुनौतीपूर्ण बना देती हैं।
  • असफलता भी लोगों को डराती है – जैसे हमने कहा, जो लोग इस पर्वत की चोटी तक चढ़ने का प्रयास कर चुके हैं, वे सफल नहीं हो पाए हैं। यह असफलता भी लोगों को डराती है और उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि भगवान शिव की मर्जी के बिना वहां चढ़ाई संभव नहीं है।
  • आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ – इस पर्वत के प्रति लोगों में गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ हैं। लोगों का मानना है कि इस पर्वत पर चढ़ने का प्रयास करने से भगवान शिव नाराज हो सकते हैं, और इसलिए वे इस जोखिम को नहीं उठाते।


मणिमहेश यात्रा: मार्गदर्शिका और जानकारी

इस साल की मणिमहेश यात्रा अब शुरू होने वाली है। इस यात्रा के लिए आपको क्या करना होगा और इसकी प्रक्रिया क्या है, आइए जानते हैं।

यात्रा की शुरुआत

सबसे पहले, आपको चंबा से भरमौर पहुँचना होगा। भरमौर चंबा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भरमौर से भरमानी देवी मंदिर की यात्रा में एक पवित्र स्नान के साथ यात्रा की शुरुआत होती है। भरमानी देवी मंदिर के कुंड में ठंडे पानी में स्नान करना अनिवार्य माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई यहाँ स्नान नहीं करता है, तो मणिमहेश यात्रा अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर भरमौर के निकट स्थित है, और आप यहाँ चौरासी मंदिरों के दर्शन भी कर सकते हैं।

भरमौर से हडसर

इसके बाद, आप वापस भरमौर आकर हडसर पहुँचना होगा, जहाँ से आप मणिमहेश ट्रेक की यात्रा शुरू कर सकते हैं। भरमौर से हडसर की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। मणिमहेश यात्रा की शुरुआत में एक सुंदर झरना है, जिसे हडसर फॉल्स कहा जाता है। पहाड़ों के बीच यह झरना देखना एक अनूठा अनुभव होता है। 

ट्रेकिंग की शुरुआत

फिर आप ट्रेक शुरू करते हैं, रास्ते में टेंट और कैंप मिल जाएँगे जहाँ भोजन, लंगर आदि की सुविधा उपलब्ध है। हालाँकि, मेन स्टॉपेज धन्छो है, जिसकी दूरी हडसर से लगभग 6 किलोमीटर है। कुछ लोग रात को यहीं ठहरते हैं और फिर अगले दिन यात्रा की शुरुआत करते हैं। यहाँ से घाटी का नजारा देखकर आपका दिल खुश हो जाएगा।

गौरीकुंड की ओर

जब आप धन्छो से आगे बढ़ते हैं, तो गौरीकुंड तक पहुँचने के लिए तीन रास्ते हैं। सबसे बाएं रास्ते “शिवघराट” के माध्यम से जाना सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह अच्छी तरह मेंटेन है और रास्ते में दुकानें, टेंट आदि हैं। “शिवघराट” वह जगह है जहाँ लोग कहते हैं कि यहाँ स्थित एक पहाड़ से कान लगाने पर आटा पिसने वाली चक्की (घराट) के चलने की आवाज़ सुनाई देती है। कुछ लोग मानते हैं कि पहाड़ों में ढोल की आवाज़ भी सुनाई देती है।

सुंद्रासी और गौरी कुंड

अगला एक स्टॉप आपको सुंद्रासी मिलेगा, जहाँ भी आपको रहने-खाने की सुविधा उपलब्ध है। वहाँ से आगे की चढ़ाई शुरू हो जाती है। अगला मुख्य पड़ाव “गौरी कुंड” है, जो धन्छो से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित है। यह माना जाता है कि यहीं देवी पार्वती स्नान करती थीं। पुरुषों को गौरी कुंड के अंदर देखने की अनुमति नहीं है; केवल महिलाएं ही इसके पवित्र पानी में स्नान कर सकती हैं। गौरी कुंड के पास कई कैंप और टेंट ठहरने के लिए उपलब्ध हैं।

मणिमहेश झील

गौरी कुंड से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर मणिमहेश झील है। मणिमहेश झील के एक कोने में शिव की संगमरमर की मूर्ति है जिसकी पूजा इस स्थान पर आने वाले तीर्थयात्री करते हैं। पवित्र जल में स्नान करने के बाद, तीर्थयात्री झील की परिधि के तीन चक्कर लगाते हैं। झील और उसके आस-पास का नज़ारा बहुत ही शानदार है। झील के शांत पानी में घाटी के ऊपर बर्फ से ढकी चोटियों का प्रतिबिंब दिखाई देता है।

मणिमहेश मणि दर्शन

मणिमहेश मणि के दर्शन आमतौर पर सूर्योदय या सूर्यास्त के बाद रात के समय होते हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं को मणिमहेश कैलाश के शिखर पर चमकती हुई प्रकाश की एक मणि के समान आकृति दिखाई देती है। यह घटना विशेष रूप से तब होती है जब सूर्य की किरणें कैलाश पर्वत के शिखर पर पड़ती हैं।

इस समय, शिखर पर एक मणि की तरह चमक दिखाई देती है, जिसे श्रद्धालु मणि दर्शन के रूप में देखते हैं। हालांकि, मणि दर्शन हमेशा नहीं होता और यह पूरी तरह से भगवान की कृपा और श्रद्धालुओं की भक्ति पर निर्भर करता है।

यह माना जाता है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ यात्रा करते हैं, उन्हें ही इस दिव्य मणि दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।

इसलिए, मणिमहेश मणि दर्शन को न केवल एक प्राकृतिक घटना के रूप में देखा जाता है, बल्कि इसे एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में भी माना जाता है, जो भक्तों के जीवन में गहरी आस्था और शांति का संचार करता है।

मणिमहेश यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय

मणिमहेश हिमाचल प्रदेश की सबसे ठंडी जगहों में से एक है। यहाँ पूरे साल बर्फबारी होती है, लेकिन कुछ महीनों में ही रास्ते खुलते हैं। जून से अक्टूबर तक का समय मणिमहेश आने के लिए सबसे अच्छा है। इसके बाद बर्फ ही बर्फ होती है और ट्रेक मुश्किल हो जाता है। भरमौर में रुकने के कई विकल्प हैं, और मणिमहेश की यात्रा हर घुमक्कड़ की लिस्ट में होनी चाहिए।

यात्रा से पहले पंजीकरण कर लें और रसीद का प्रिंटआउट साथ रखें। भरमौर में बीएसएनएल, जियो, और एयरटेल नेटवर्क उपलब्ध हैं, लेकिन सिग्नल कमजोर हो सकते हैं। स्वास्थ्य जांच के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट लाना आवश्यक है और अस्वस्थ या 75 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को यात्रा की अनुमति नहीं मिलेगी। यात्रा के दौरान छाता, रेनकोट, गर्म कपड़े, जूते, और टॉर्च लाएं और प्रशासन द्वारा निर्धारित मार्गों का पालन करें। प्लास्टिक का प्रयोग न करें, मादक द्रव्यों का सेवन न करें, और यात्रा को पिकनिक का अवसर न मानें। खराब मौसम में यात्रा रोकें और सुरक्षित स्थान पर रुकें।

कैसे जाएं?

दोस्तों, अब बात करते हैं कि आप मणिमहेश कैसे जा सकते हैं। यहाँ आप लगभग हर माध्यम से पहुँच सकते हैं, जैसे कि…

  • फ्लाइट से: अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं, तो गग्गल कांगड़ा एयरपोर्ट सबसे नजदीक है। गग्गल से भरमौर लगभग 176.2 km किमी की दूरी पर है। 
  • ट्रेन से: मणिमहेश से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। पठानकोट से भरमौर की दूरी लगभग 160 किमी है। आप बस या टैक्सी से भरमौर पहुँच सकते हैं और फिर मणिमहेश ट्रेक कर सकते हैं।
  • सड़क मार्ग से: सड़क मार्ग से भी आप मणिमहेश पहुँच सकते हैं। पठानकोट, धर्मशाला, और डलहौजी से भरमौर के लिए बसें उपलब्ध हैं। इसके बाद, 13 किमी का ट्रेक करना होगा।
  • हेलीकॉप्टर से: अगर आप लंबा ट्रेक नहीं करना चाहते, तो हेलीकॉप्टर का विकल्प भी है। हेलीकॉप्टर से आप भरमौर से गौरी कुंड तक पहुँच सकते हैं, और फिर सिर्फ 1 किमी का ट्रेक करना होगा। रिजर्वेशन भरमौर और चंबा में होता है.

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