हिमाचल प्रदेश की सुंदरता सिर्फ बर्फ से ढकी वादियों और ऊँचे पहाड़ों तक सीमित नहीं है। यह धरती रहस्यमयी आस्थाओं, प्राचीन परंपराओं और अनोखी मान्यताओं की गहराई से भरी हुई है। इन्हीं में से एक है धर्मराज मंदिर, भरमौर। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक ऐसा रहस्यमयी स्थान भी है, जहाँ मृत्यु के बाद आत्माएं अपना निर्णय सुनाने आती हैं।
धर्मराज कौन हैं?
हिंदू मान्यता के अनुसार धर्मराज को यमराज भी कहा जाता है। वे मृत्यु के देवता हैं, जो जीवों के पुण्य और पाप का हिसाब रखकर मृत्यु के बाद उनके भाग्य का निर्धारण करते हैं स्वर्ग या नरक। लेकिन हिमाचल के भरमौर में बसे इस मंदिर में धर्मराज सिर्फ मृत्यु के देवता नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय राजा हैं, जिनका ‘दरबार’ आत्माओं का अंतिम न्यायालय है।
मंदिर की रहस्यमयी विशेषता: आत्माओं की अदालत
भरमौर का धर्मराज मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्माएं यहाँ आती हैं। मान्यता है कि यहाँ तीन द्वार हैं —
- धर्म द्वार – पुण्य आत्माएं यहीं से स्वर्ग की ओर जाती हैं।
- पाप द्वार – जिनका जीवन पापमय रहा हो, वे नरक की ओर प्रस्थान करती हैं।
- निर्णय द्वार – जिनका जीवन संतुलित रहा हो, उनका फैसला यहीं होता है।
स्थानीय लोगों का विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा सबसे पहले यहीं आती है, अपना पक्ष रखती है और फिर धर्मराज उसका न्याय करते हैं।
निर्णय द्वार की पवित्रता
निर्णय द्वार (जिससे आत्माओं का अंतिम निर्णय होता है) के सामने कोई भी व्यक्ति सहज नहीं रह पाता। स्थानीय लोगों का कहना है कि वहाँ खड़े होकर व्यक्ति को अपने जीवन के सारे अच्छे-बुरे कर्म याद आने लगते हैं जैसे कि स्वयं धर्मराज आपकी आत्मा में झाँक रहे हों।
भरमौर क्यों है इतना पवित्र?
भरमौर को कभी ‘शिवभूमि’ कहा जाता था। यह क्षेत्र प्राचीन चंबा रियासत की पहली राजधानी था और यहाँ का वातावरण आज भी शिव और धर्म के ऊर्जा से ओतप्रोत है। मंदिर परिसर में 84 प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनमें से धर्मराज का मंदिर सबसे रहस्यमयी और महत्वूर्ण माना जाता है।
84 मंदिरों का चौरासी मंदिर परिसर
जहाँ धर्मराज मंदिर स्थित है, वह स्थल ‘चौरासी मंदिर परिसर’ के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इन 84 मंदिरों का निर्माण केवल एक ही रात में हुआ था, और इसमें देवताओं की विशेष कृपा थी।
यह संख्या 84 भी यूँ ही नहीं है यह 84 लाख योनियों का प्रतिनिधित्व करती है, और ऐसा माना जाता है कि इस परिसर के दर्शन से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
मनिमहेश यात्रा की शुरुआत यहीं से
हर साल होने वाली मनिमहेश यात्रा के लिए भक्त धर्मराज मंदिर से अनुमति लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि बिना धर्मराज की ‘आज्ञा’ के कोई भी व्यक्ति शिव के दरबार तक नहीं पहुँच सकता। यही कारण है कि हजारों यात्री पहले इस मंदिर में हाज़िरी लगाते हैं, फिर मनिमहेश यात्रा पर निकलते हैं।
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मंदिर की वास्तुकला: एक साक्षात दरबार
धर्मराज मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिमाचली शैली की है। लकड़ी और पत्थरों से बना यह मंदिर एक महल की तरह दिखाई देता है। अंदर के हिस्से में आपको नक्काशीदार खंभे, देवदार की लकड़ी से बनी मूर्तियाँ और एक सिंहासन जैसा स्थान मिलेगा, जिसे ‘न्यायासन’ कहा जाता है। इसी पर धर्मराज के रूप में पुजारी बैठते हैं और फैसले सुनाते हैं।
धर्मराज के तीन रूप – तीन मंदिर
भरमौर में धर्मराज के तीन रूपों के लिए तीन अलग-अलग मंदिर हैं:
- धर्मराज प्रथम मंदिर – यहाँ धर्मराज की न्यायप्रिय छवि के दर्शन होते हैं।
- धर्मराज द्वितीय मंदिर – इस रूप में वे आत्माओं के परीक्षा लेने वाले हैं।
- धर्मराज तृतीय मंदिर – यहाँ वे अंतिम निर्णय सुनाते हैं।
यह त्रयी मंदिर व्यवस्था भारत में और कहीं नहीं मिलती।
यहाँ की परंपराएं और अद्भुत मान्यताएं
- भूतपूर्व राजा भी लेते थे सलाह: पुराने समय में चंबा के राजा धर्मराज मंदिर में सलाह लेकर ही निर्णय लेते थे।
- कोई भी झूठ बोल नहीं सकता: मंदिर में यह मान्यता है कि झूठ बोलने वाला यहाँ आते ही खुद डर से सच बोलने लगता है।
झूठ यहाँ टिकता नहीं
स्थानीय कथाओं के अनुसार कई बार यहाँ झूठ बोलने वालों को चक्कर आ जाते हैं या उनका गला सूख जाता है।
कहा जाता है कि मंदिर में खड़े होकर अगर कोई झूठ बोले तो उसकी आत्मा बेचैन हो उठती है। यहाँ की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली मानी जाती है कि मन का सच्चा चेहरा स्वयं सामने आ जाता है।
मंदिर में पुजारी नहीं, न्यायधीश होता है: यहाँ का पुजारी वास्तव में धर्मराज का प्रतिनिधि माना जाता है। वह श्रद्धालुओं की समस्याएं सुनता है और सलाह देता है।
पुजारी नहीं, न्याय प्रतिनिधि
यहाँ का पुजारी केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं करता, बल्कि उसे ‘न्याय प्रतिनिधि’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि धर्मराज का आदेश उसे स्वप्न में प्राप्त होता है। यदि वह आदेश प्राप्त न करे, तो वह मंदिर की सेवा नहीं कर सकता।
रात्रि में दिखाई देती हैं दिव्य छायाएँ
स्थानीय ग्रामीणों और कुछ पर्यटकों का दावा है कि कई बार मंदिर परिसर के आसपास रात्रि के समय सफेद परछाइयाँ या अदृश्य मंत्रोच्चारण की आवाजें सुनाई देती हैं।
इन घटनाओं को आत्माओं की उपस्थिति या धर्मराज की ऊर्जा का साक्ष्य माना जाता है।
धार्मिक पर्यटन और बढ़ती लोकप्रियता
पिछले कुछ सालों में धर्मराज मंदिर एक खास धार्मिक जगह बन गया है। यह मंदिर उन लोगों को बहुत आकर्षित करता है जो आस्था, न्याय और रहस्य को एक साथ महसूस करना चाहते हैं।
कैसे पहुँचें भरमौर?
- नजदीकी रेलवे स्टेशन: पठानकोट
- निकटतम हवाई अड्डा: गग्गल, कांगड़ा
- सड़क मार्ग: चंबा से भरमौर की दूरी लगभग 60 किमी है। टैक्सी और बसें आसानी से उपलब्ध हैं।