वास्तु शास्त्र पौराणिक काल से भारत में बहुत महत्व रखता है। वास्तु शास्त्र संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है “वास्तुकला का विज्ञान”। यह प्राचीन प्रणाली भारत के ग्रंथो पर आधारित है जो भवन के निर्माण और वास्तुकला के सिद्धांतों पर आधारित है। वास्तुकला का उल्लेख हमें चारों वेदों में देखने को मिलता है और प्राचीन काल में इसका उपयोग मंदिरों,महलों, हवेलिओं व अन्य संरचनाओं के लिए होता था। वास्तु शास्त्र केवल वास्तुकलाओं और भवनों के निर्माण के लिए ही नहीं बल्कि हमारे आतंरिक और बाहरी वातावरण में संतुलन बनाये रखने के लिए और सकारात्मिक ऊर्जा को बनाये रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
वास्तु शास्त्र के पांच तत्त्व है पृथ्वी (स्थिरता और आधार), जल (शुद्धता और प्रवाह),वायु (गति और जीवनशक्ति),अग्नि (ऊर्जा और परिवर्तन),आकाश (विस्तार और स्वतंत्रता), और इन तत्वों का संतुलन और सही दिशा में इस्तेमाल करने से घर में सकारत्मक ऊर्जा,व् शांति बानी रहती है। इनके अलावा वास्तु शास्त्र में दिशाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान है, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, पूर्वोत्तर, पश्चिमोत्तर, आग्नेय (दक्षिण-पूर्व), नैऋत्य (उत्तर-पश्चिम), हर दिशाओं के अपने महत्व है और किसी भी भवन का निर्माण करते हुए इन दिशों को धायण में रखा जाता है ताकि नकारत्मक ऊर्जाओं को बाधित किया जाए।
वास्तु शास्त्र में वास्तुकला का महत्व
वास्तुयशास्त्र को बहुत ही ध्यानपूर्वक भवन के निर्माण और डिज़ाइन में लागू किया जाता है।
भूमि का चयन:
भूमि को शुभ माना जाता है जब उसके चारो साइड का मुख चारों दिशाओं के और हो और उसका मुख्या दरवाज़ा पूर्व या उत्तर दिशा की और हो।
चौकोर या रेक्टेंगुलर भूमि को सबसे ज़्यादा शुभ माना जाता है।
भवन का ढांचा:
प्रवेश द्वार का साफ़ सुथरा होना और इसका सही दिशा में होना बहुत ज़रूरी है।
हर एक कमरे का सही जगह पर होना बहुत ज़रूरी है जैसे :
- लिविंग रूम का नार्थ या नार्थ-ईस्ट के तरफ होना।
- किचन का साउथ-ईस्ट की तरफ होना क्योंकि यह अग्नि तत्त्व से जुडी है।
- बाथरूम का नार्थ-वेस्ट की तरफ या वेस्ट की तरफ होना ताकि ड्रेनेज में कोई दिक्कत न हो।
कमरों के डिज़ाइन:
ब्रम्हास्थान (सेंट्रल एरिया) खुला रहना चाहिए और यहाँ भरी सामान रखने से भी परहेज़ करें ताकि ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।
दरवाज़े और खिड़कियां सही जगह पर होनी चाहिए ताकि अच्छी रौशनी आ सके और वेंटिलेशन हो।
प्राकृतिक सामान का उपयोग:
पत्थर, मिट्टी, लकड़ियों जैसी प्राकृतिक सामानो का इस्तेमाल प्रकृति के साथ जुड़े रहने के लिए करना।
रंगों का इस्तेमाल भी दिशाओं और तत्वों के अनुसार किया जाता है ताकि सकारत्मक ऊर्जा बानी रहे।
वास्तुशास्त्र का आज के मॉडर्न ज़माने में उपयोग
यूँ तो वास्तुकला प्राचीन भारत की दें है और इसका इस्तेमाल तब किया जाता था, पर आज के आधुनिक युग में भी इसे खूब महत्व मिल रहा है और लोग इसका चयन अपने घर, शहरी योजना व् ऑफिस में कर रहे है।
- घरों का निर्माण वास्तु शास्त्र के मुताबिक किया जा रहा है ताकि सुख, समृद्धि और स्वास्थ बना रहे।
- ऑफिस में इसका इस्तेमाल उतप्दाकता और सफलता को बढ़ने के लिए किया जा रहा है।
- पौराणिक काल के तरह ही आज शहरों को बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि अच्छा वातावरण बना रहे।
वास्तु शास्त्र और फेंग शुई में अंतर
वास्तु शास्त्र और फेंग शुई दोनों ही प्राचीन समय से सही तरह से निर्माण, जीवन में सकारत्मक ऊर्जा और पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे है। फेंग शुई प्राचीन चीनी विज्ञानं है और वास्तु शास्त्र भारतीय। यह कुछ हद तक तो एक सामान हैं लेकिन यह कई मायनो में अलग हैं, जैसे प्राचीन समय में वास्तु शास्त्र का इस्तेमाल मंदिरों, महलों, घरों और शहरों के लिए किया जाता है परन्तु फेंग शुई का इस्तेमाल सम्राटों को दफ़न करने के लिए क्षेत्रों का निर्माण करने के लिए किया जाता था।
फेंग शुई पृथ्वी, अग्नि, धातु, लकड़ी और जल ध्यान देता है और वास्तु शास्त्र पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश तत्वों पर केंद्रित है।
वास्तु शास्त्र में नार्थ दिशा को शुभ माना जाता है, और फेंगशुई में साउथ और साउथ-ईस्ट दिशा को आमतौर पर अधिक शुभ माना जाता है।
सामान्य वास्तु टिप्स
आप कुछ सामान्य टिप्स अपने घर या कार्यालय के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं:
- प्रवेश द्वार को साफ-सुथरा रखें और रौशनी से भरा रखें ताकि सकारत्मक ऊर्जा बनी रहे।
- भारी फर्नीचर को साउथ-वेस्ट कोने में रखें, और हलके फर्नीचर्स को अन्य जगहों पर रखा जा सकता है।
- शीशे को मुख्या दरवाज़े के सामने लगाने से बचें, इसे नार्थ या ईस्ट दिशा की तरफ दीवार पर रखना सबसे अच्छा माना जाता है।
- नेचुरल रौशनी को महत्व दें, साथ ही अर्टिफिशियल रौशनी जैसे बल्ब का इस्तेमाल भी अचे से करें ताकि रौशनी सभी जगह अचे से बानी रहे।
- पौधे ज़रूर लगाएं और इन्हे नार्थ-ईस्ट दिशा में रखें ताकि ताज़गी और ऊर्जा बानी रहे।
मॉडर्न प्राथमिकता और निंदा
प्राथमिकता: वास्तु शास्त्र का आज भी भारत में एक विशेष स्थान है और इसे आज भी लोगों द्वारा बहुत विश्वास से इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने पर ज़ोर देता है जो के आज के जीवन शैली से मेल खता है।
निंदा: वैज्ञानिक आधार पर इसकी निंदा की जाती है क्योंकि इसका कोई पक्का प्रमाण नहीं है और इसे अन्धविश्वास की श्रेणी में देखा जाता है। कभी कभी वास्तु शास्त्र के कठिन नियम आजकल के मॉडर्न डिज़ाइन की ज़रूरतों व्यक्तिगत पसंद के साथ मेल नहीं खाते।
वास्तु शास्त्र को जीवन में कैसे अपनाएं?
वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने के लिए आप कई चरणों का इस्तेमाल कर सकते हैं:
- अपने जगह का प्रशिक्षण करवाने के लिए आप किसी विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं।
- अपने घर या ऑफिस की दिशा, उसकी रूपरेखा, चीज़ों को रखने का स्थान इन सबकी जांच कर लें।
- कोई भी बदलाव करने हो तो वास्तु के अनुसार करें जैसे ,कमरों का रंग, फर्नीचर्स की जगह, कमरे में किये जा रहे काम को बदलना इत्यादि।
- पुराने तोर तरीके और सिद्धांतों के साथ साथ अपने व्यक्तिगत आराम के बीच में एक संतुलन को बनाएं रखें ताकि वातावरण को अच्छा बनाये रखने के साथ साथ आप भी असुविधा से ना जूझें।
सारांश
वास्तुकला एक ऐसी प्रणाली है जिसकी वजह से हमें जीवन में सुख, समृद्धि, सेहत और तालमेल की प्राप्ति होती है। अब इसे चाहे हम प्राचीन वास्तुकला की परंपरा के रूप में देखे या मॉडर्न प्रैक्टिस के रूप में, एक बात तो साफ़ होती है के इसका इस्तेमाल प्राकृतिक और ऊर्जा के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए बरसों से किया जा रहा है। अब यह सिर्फ एक अन्धविश्वास है या नहीं यह बता पाना मुश्किल है लेकिन यह साफ़ है के इसका महत्व और उपयोग आज के समय में व्यक्तिगत जानकारी और समायोजन पर निर्भर करता है।