भारत में मनाए जाने वाले 21 अनोखे त्योहार

भारत में मनाए जाने वाले 21 अनोखे (Unique) त्योहार

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भारत एक भाषाओं और परंपराओं का ताना-बाना है। त्योहार देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण हैं। जबकि दिवाली, होली और ईद जैसे प्रसिद्ध त्योहार मनाए जाते हैं, कुछ ऐसे भी त्योहार हैं जो अपनी स्थानीय सीमाओं से परे उतनी पहचान नहीं पाते। ये उत्सव गहराई से जुड़ी हुई परंपराओं, इतिहास और लोकाचार से प्रेरित हैं, जो भारत की भिन्न सांस्कृतिक बनावट में एक झलक प्रदान करते हैं। यहां भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाए जाने वाले 21 अनोखे (unique) और विशिष्ट त्योहारों की सूची दी गई है, जो प्रत्येक अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता रखते हैं।

ये रहे भारत के 21 सबसे अनोखे त्योहार। Here are 21 of the most unique festivals in India.

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1. नवरात्र (भारतवर्ष)

नवरात्रों का भारतीय संस्कृति में अहम् महत्व है। यह प्रमुख त्यौहार देवी दुर्गा को समर्पित है। यह नौ रातों का पर्व पूरे भारतवर्ष में बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। इस त्यौहार में दुर्गा में के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्री साल में चार बार आते है, चैत्र, आषाढ़, शारदीय और माघ, जिनमे से चैत्र और शारदीय नवरात्री प्रमुख है। आषाढ़ और माघ नवरात्री को गुप्त नवरात्री कहा जाता है, जो तांत्रिक साधनाओं के लिए महत्व रखता है।  

माँ हर नवरात्री में अलग वाहनों में सवार होकर आतीं हैं, और यह साप्ताहिक दिनों के मुताबिक अलग होते हैं, और उनसे जुडी मान्यताएं भी हैं।  

देवी भागवत के श्लोक द्वारा बताया गया है माँ किन दिनों में कोनसे वाहन में सवार होकर आतीं हैं 

शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।

गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ 

इस श्लोक द्वारा यह बताया गया है अगर नवरात्री  इन दिनों से शुरू हो तो माँ किस वहां पर आतीं हैं:

सोमवार या रविवार:  माँ  हाथी पर आती हैं।  

शनिवार और मंगलवार: माँ  अश्व यानी घोड़े पर आती है।  

गुरुवार और शुक्रवार: माता रानी डोली या पालकी पर आती हैं।  

बुधवार: माँ  दुर्गा का वाहन नाव होता है।

माना जाता है की माँ का घोड़े और डोली में आना अशुभ संकेत माना जाता है। इससे अर्थव्यवस्था में गिरावट,व्यापार में मंदी, हिंसा, देश-दुनिया में महामारी के बढ़ने और प्राकृतिक आपदा के संकेत मिलते हैं। वहीँ दूसरी और हाथी और नाव शुभ संकेत होते हैं। 2024 के नवरात्र 3 अक्टूबर,  गुरूवार से 12 अक्टूबर शनिवार तक होने वाले हैं।  इस बार माँ डोली में आएँगी 

2. थाईपुसम (तमिलनाडु)

थाईपुसम तमिल समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो भगवान मुरुगन को समर्पित है। यह त्योहार उस क्षण की याद दिलाता है जब पार्वती ने मुरुगन को राक्षस सूरापदमन का वध करने के लिए एक भाला दिया था। भक्त इस अवसर पर कठोर उपवास, पूजा और तपस्या करते हैं, जिसमें कावड़ी अट्टम जैसे अनुष्ठान शामिल होते हैं। इस त्योहार में भक्त अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए शरीर को काँटों और भालों से छेदते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं।

 तमिलनाडु, मलेशिया और सिंगापुर में यह त्योहार जनवरी या फरवरी महीने में मनाया जाता है।

3. जल्लीकट्टू (तमिलनाडु)

जल्लीकट्टू एक 2000 साल पुराना खेल है, जिसका तमिल संस्कृति में गहरा महत्व है। यह पारंपरिक बैल-शांत करने की प्रतियोगिता पोंगल त्योहार के दौरान आयोजित होती है और तमिल साहित्य में इसका उल्लेख है। यह पर्व युवाओं की ताकत और साहस दिखाने का माध्यम हुआ करता था और कभी-कभी इसमें जीतने वाले युवक को विवाह के लिए योग्य माना जाता था।

स्थान: मदुरै, तमिलनाडु

समय: जनवरी (पोंगल उत्सव)

4. लट्ठमार होली (उत्तर प्रदेश)

लट्ठमार होली का संबंध भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से है, जब उन्होंने राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेली थी। बर्साना गाँव में भगवान कृष्ण ने होली के दौरान राधा और उनकी सखियों के साथ शरारत की थी। राधा और महिलाओं ने इसका जवाब देने के लिए उन्हें और उनके दोस्तों को डंडों से दौड़ाया था।  इस पर्व में महिलाएं पुरुषों को लट्ठ से मारती हैं और यह होली के पहले उत्तर प्रदेश के बरसाना और नंदगांव में मनाया जाता है। आज, यह होली प्रेम और शरारत की कहानी को जीवंत करती है।

 स्थान: बरसाना, नंदगाव 

समय: फरवरी, मार्च (होली से एक या दो दिन पहले)

5. फूलों की होली (उत्तराखंड)

फूलों की होली या फूलदेई, जिसे कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है, पारंपरिक होली से अलग है। इसमें रंगों की बजाय ताजे फूलों का उपयोग होता है। भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम से प्रेरित इस त्योहार में रंगों की जगह फूलों का इस्तेमाल होता है। वृंदावन और मथुरा में फूलों की होली शांति और प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। यह भगवान कृष्ण और राधा के प्रति भक्ति का प्रतीक भी है और पर्यावरण की सुरक्षा की भावना को भी दर्शाता है।

स्थान: वृंदावन, मथुरा और कुमाऊं क्षेत्र

समय: मार्च (होली के दौरान)

6. भगोरिया महोत्सव (मध्य प्रदेश)

भगोरिया महोत्सव भील और भीलाला जनजातियों द्वारा मनाया जाता है और इसका संबंध पुराने विवाह प्रथाओं से है। इस त्योहार के दौरान युवा एक-दूसरे को पसंद कर सकते हैं और पारंपरिक रूप से यह प्रेम और विवाह का प्रतीक माना जाता है।

स्थान: झाबुआ और आलीराजपुर, मध्य प्रदेश

समय: मार्च (होली के पहले)

7. हेमिस महोत्सव (लद्दाख)

हेमिस महोत्सव बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु पद्मसंभव की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। गुरु पद्मसंभव, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं, ने इस त्योहार की शुरुआत की थी। वे बुरी आत्माओं को हराकर बौद्ध शिक्षाओं का प्रसार करते थे। यह त्योहार हेमिस मठ में होता है, जो लद्दाख का सबसे बड़ा और संपन्न मठ है। इसमें भव्य मुखौटा नृत्य होते हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाते हैं।

स्थान: हेमिस मठ, लद्दाख

समय: जून या जुलाई

8. करणी माता महोत्सव (राजस्थान)

यह महोत्सव करणी माता मंदिर में मनाया जाता है, जहाँ चूहों को पवित्र माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि करणी माता, देवी दुर्गा का अवतार थीं, जिन्होंने एक लड़के को चूहा बनाकर पुनर्जीवित किया था। यह महोत्सव नवरात्रि के दौरान अप्रैल और अक्टूबर में होता है।

स्थान: देशनोक, बीकानेर के पास, राजस्थान

9. आओलिंग महोत्सव (नागालैंड)

आओलिंग महोत्सव नागालैंड के योद्धा माने जाने कोन्याक जनजाति द्वारा फसल के मौसम की शुरुआत और नए साल का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। इस दौरान नाच-गाना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से देवताओं को धन्यवाद दिया जाता है।

स्थान: मोन जिला, नागालैंड

समय: अप्रैल

10. वांगला महोत्सव (मेघालय)

वांगला महोत्सव, जिसे “100 ढोलों का महोत्सव” भी कहा जाता है, गारो समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह फसल के समापन का प्रतीक है और मिसी सालजोंग देवता को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। लोग अपनी ख़ुशी 100 ढोलों की धुन पर नाचते हुए व्यक्त करते हैं और आने वाले समय के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। 

स्थान: गारो हिल्स, मेघालय

समय: नवंबर

11. पुली कली (केरल)

पुली कली एक जीवंत लोक कला है जिसे केरल के ओणम उत्सव के दौरान मनाया जाता है।यह 200 साल पुरानी परंपरा कोच्चि के महाराजाओं के मनोरंजन के लिए शुरू हुई थी और आज यह मानवीय साहस और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक बन गई है। इसमें लोग बाघ और शिकारी की वेशभूषा में ढोल की ताल पर नृत्य करते हैं, जो प्रकृति की शक्ति का प्रतीक है।

स्थान: त्रिशूर, केरल

समय: अगस्त-सितंबर (ओणम के दौरान)

12. नागोबा जातरा (तेलंगाना)

नागोबा जातरा तेलंगाना के गोंड़ जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक पर्व है। इस महोत्सव में नागोबा, सर्प देवता की पूजा की जाती है और यह पर्व गोद समुदाय की गहरी आस्था का प्रतीक है। इसमें पारंपरिक अनुष्ठान किए जाते हैं जो इस जनजाति की प्रकृति और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा को दर्शाते हैं।

स्थान: केसलापुर गाँव, आदिलाबाद, तेलंगाना

समय: जनवरी या फरवरी

13. किला रायपुर स्पोर्ट्स महोत्सव (पंजाब)

इसे ग्रामीण ओलंपिक्स के नाम से भी जाना जाता है और यह 1933 में स्थापित हुआ था। इसमें बैलगाड़ी दौड़, ट्रैक्टर रेसिंग और अन्य पारंपरिक खेल शामिल होते हैं, जो ग्रामीण पंजाब के धैर्य और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

स्थान: किला रायपुर, लुधियाना, पंजाब

समय: फरवरी

14. छऊ महोत्सव (ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल)

छऊ नृत्य महोत्सव पूर्वी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा प्राप्त है। छऊ नृत्य के जरिए महाभारत और रामायण की कहानियाँ दिखाई जाती हैं, जिसमें अच्छाई की बुराई पर विजय का संदेश दिया जाता है। इस नृत्य में कलाकार मुखौटे पहनकर अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं।

स्थान: ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल

समय: अप्रैल-मई

15. हॉर्नबिल महोत्सव (नागालैंड)

यह त्योहार भारत के महान हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर रखा गया है। हॉर्नबिल महोत्सव नागालैंड सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है और इसका उद्देश्य नागा जनजातियों के बीच एकता को बढ़ावा देना और उनकी परंपराओं की रक्षा करना है। इसमें संगीत, नृत्य और खेलकूद के कार्यक्रम होते हैं।  नागालैंड की 16 जनजातियाँ इस उत्सव में अपने पारंपरिक नृत्य, संगीत और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन करती हैं, जिससे नागा संस्कृति की एक झलक मिलती है।

स्थान: कोहिमा, नागालैंड

समय: दिसंबर

16. सुमे-गेलिरक महोत्सव (अरुणाचल प्रदेश)

सुमे-गेलिरक महोत्सव इदु मिश्मी जनजाति द्वारा मनाया जाता है और इसका संबंध कृषि परंपराओं से है। इसमें अच्छी फसल और जनजाति की भलाई के लिए प्रार्थना की जाती है।

स्थान: लोअर दिबांग घाटी, अरुणाचल प्रदेश

समय: मार्च

17. बस्तर दशहरा (छत्तीसगढ़)

बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलने वाला एक अनूठा पर्व है, जो देवी दंतेश्वरी की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार 13वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है, जिसमें आदिवासी रीति-रिवाजों का पालन किया जाता हैऔर इसमें विभिन्न अनुष्ठान, बलिदान और जुलूस होते हैं।

स्थान: बस्तर, छत्तीसगढ़

समय: सितंबर-अक्टूबर

18. सुला फेस्ट (महाराष्ट्र)

सुला फेस्ट नासिक में स्थित सुला वाइनयार्ड्स में आयोजित होता है और इसमें वाइन टेस्‍टिंग, संगीत कार्यक्रम और कला का संगम होता है। यह महोत्सव 2008 से प्रारंभ हुआ था और इसका उद्देश्य भारत में वाइन पर्यटन को बढ़ावा देना है।

स्थान: सुला वाइनयार्ड्स, नासिक, महाराष्ट्र

समय: फरवरी

19. मोपला फूड फेस्टिवल (केरल)

यह महोत्सव केरल की मोपला समुदाय की खानपान परंपराओं का सम्मान करता है, जिसमें अरब, मालाबार और फारसी स्वादों का अनोखा मेल है। इस फेस्टिवल में बिरयानी, पठिरी और समुद्री भोजन की विशेषता होती है।

स्थान: कोझिकोड, केरल

समय: अगस्त-सितंबर

20. नुआखाई (ओडिशा)

नुआखाई ओडिशा और छत्तीसगढ़ के पश्चिमी क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक फसल उत्सव है।12वीं सदी से शुरू हुआ यह पर्व नई फसल के स्वागत के लिए मनाया जाता है। इसमें पहली फसल को देवताओं और पूर्वजों को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के साथ भोज किया जाता है।

स्थान: संबलपुर, ओडिशा

समय: सितंबर (गणेश चतुर्थी के अगले दिन)

21. पुष्कर ऊंट मेला (राजस्थान)

पुष्कर ऊंट मेला दुनिया के सबसे बड़े ऊंट मेलों में से एक है और इसकी शुरुआत 1800 के दशक में हुई थी। यह मेला पहले ऊंटों और मवेशियों के व्यापार के लिए आयोजित किया जाता था, लेकिन अब यह सांस्कृतिक उत्सव में बदल गया है। यह मेला धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संगम है।

स्थान: पुष्कर, राजस्थान

समय: नवंबर

निष्कर्ष

भारत की सांस्कृतिक विविधता बेजोड़ है। ये 21 त्योहार देश की परंपराओं और रीतियों की एक झलक प्रदान करते हैं। प्रत्येक त्योहार में केवल परंपराओं का जश्न नहीं होता है, बल्कि उनमें छिपी प्रेम, साहस, आध्यात्मिकता और समृद्धि की कहानियाँ हमें एकदूसरे से जोड़ती हैं। चाहे वह राधा-कृष्ण का प्रेम हो, बाघ और शिकारी की नृत्य कला, या प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने के अनुष्ठान हो, चाहे वह फसल उत्सव धार्मिक अनुष्ठान हों, या आधुनिक सांस्कृतिक महोत्सव, हर एक त्योहार भारतीय संस्कृति की आत्मा को उजागर करता है, और भारतीय जीवन के अलग अलग रंगों को दर्शाता हैं। इन अनोखे, अद्भुद और अविश्वसनीय त्योहारों के माध्यम से हमें अपनी परंपराओं से जुड़ने का मौका मिलता है। इन त्योहारों में भाग लेकर कोई भी भारत की जीवंत विरासत में पूरी तरह से डूब सकता है।

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