माँ चिंतपूर्णी का पवित्र मंदिर
माँ चिंतपूर्णी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है। चिंतपूर्णी शब्द का अर्थ है “चिंता को दूर करने वाली देवी,” और यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता के अनुसार, जहाँ-जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। चिंतपूर्णी का स्थान भी इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है। धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, माँ छिन्नमस्तिका का यह स्थान भगवान रुद्र महादेव द्वारा चारों ओर से संरक्षित है। पूर्व में कालेश्वर महादेव, पश्चिम में नारायण महादेव, उत्तर में मुचकुंद महादेव, और दक्षिण में शिव बाड़ी स्थित हैं, जो चिंतपूर्णी से लगभग समान दूरी पर हैं। यह प्रमाणित करता है कि चिंतपूर्णी ही माँ छिन्नमस्तिका का निवास स्थान है।
माँ छिन्नमस्तिका का महात्म्य
माँ छिन्नमस्तिका एक महत्वपूर्ण देवी हैं जिन्हें अपने रौद्र रूप, पापियों के संहार और भक्तों पर कृपा के लिए जाना जाता है। उनका नाम “छिन्नमस्तिका” का अर्थ है “जिसका सिर काटा हुआ हो।” छिन्नमस्तिका दुर्गा के दस महाविद्याओं में से एक हैं। उनके उग्र रूप की प्रतिमा में, वे अपने ही सिर को काटकर हाथ में पकड़े हुए होती हैं, और उनके कटे हुए सिर से तीन धाराओं में रक्त बहता है, जिसे उनकी दो सहायिकाएँ जया और विजया और स्वयं देवी पीती हैं। यह रूप जीवन और मृत्यु के पारस्परिक संबंध को दर्शाता है।
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक, श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार, माँ पार्वती अपनी सखियों जया और विजया (जिन्हें डाकिनी और वारिणी भी कहा जाता है) के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। माँ पार्वती, जो अपनी सखियों के साथ अत्यंत खुश और प्रेममयी स्थिति में थीं, ने अपने सखियों से भोजन की मांग पूरी करने का अनुरोध किया। जब उनकी सहेलियाँ भूखी थीं और जल्दी भोजन की मांग करने लगीं, तो दयालु माँ पार्वती ने हंसते हुए अपनी उंगली के नाखून से अपना सिर काट लिया। इससे तुरंत तीन दिशाओं में खून बह निकला, जिसे जया और विजया ने दो दिशाओं से और देवी ने स्वयं तीसरी दिशा से पिया। इस अद्भुत कृत्य के कारण माँ पार्वती को “छिन्नमस्तिका” के नाम से जाना गया। वह अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए इस तरह के रूप में प्रकट होती हैं, और इस कारण उन्हें “माता चिंतपूर्णी” भी कहा जाता है।
माँ चिंतपूर्णी की खोज की कहानी
14वीं शताब्दी में, माई दास नामक एक भक्त ने माँ चिंतपूर्णी के इस पवित्र स्थान की खोज की थी। माई दास का जन्म पटियाला के अठूर गाँव में हुआ था और उनका अधिकांश समय पूजा-पाठ में ही बीतता था। परिवार के सदस्य उनकी भक्ति के कारण उन्हें परिवार से अलग कर चुके थे। एक दिन, जब माई दास अपने ससुराल जा रहे थे, उन्होंने एक पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम करते हुए एक दिव्य कन्या का दर्शन किया। कन्या ने उन्हें आदेश दिया कि वह उसी पेड़ के नीचे एक पिंडी स्थापित कर पूजा करें।
माई दास ने देवी के आदेश को गंभीरता से लिया और उसी स्थान पर पूजा शुरू की। देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह किसी भी स्थान पर जाकर कोई भी शिला उखाड़ें, वहाँ से जल निकलेगा। आज उसी स्थान पर माँ चिंतपूर्णी का भव्य मंदिर खड़ा है।
इस मंदिर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण मान्यताएँ हैं:
- माता छिन्नमस्तिका की रक्षा: मान्यता है कि माँ छिन्नमस्तिका के धाम की रक्षा भगवान रुद्र महादेव करते हैं, जो इस पवित्र स्थान की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करते हैं।
- तालाब की स्थापना: माईदास द्वारा पत्थर उखाड़े जाने के बाद वहाँ एक तालाब बना, जो आज भी उसी स्थान पर मौजूद है। इस तालाब को पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के दीवान ने बनवाया था, और यह तालाब माँ चिंतपूर्णी के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल है।
- श्री बाबा माईदास जी की समाधि: तालाब के ठीक ऊपर, माता श्री चिंतपूर्णी मंदिर के संस्थापक श्री बाबा माईदास जी की समाधि बनी हुई है। यह समाधि भक्तों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है, और यह दर्शाता है कि माईदास जी की भक्ति और मेहनत से ही इस पवित्र स्थल की स्थापना हुई थी।
इन मान्यताओं और ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से, माँ चिंतपूर्णी का मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भक्ति, श्रद्धा और दिव्यता का प्रतीक भी है। यह पवित्र स्थल भक्तों को एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करता है और उनकी आस्था को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है।
माँ चिंतपूर्णी का मंदिर और उसकी सुविधाएँ
माँ चिंतपूर्णी का मंदिर एक सुंदर तालाब के साथ है, जहाँ से जल निकालकर पूजा की जाती है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है और यहाँ भक्तों के लिए कई सुविधाएँ उपलब्ध हैं:
- मुफ्त लंगर
- धर्मशालाएँ
- बारिश से बचने के लिए आश्रय
- स्ट्रीट लाइटिंग
- पार्किंग और वाटर एटीएम
त्योहार और विशेष आयोजन
माँ चिंतपूर्णी के मंदिर में साल भर कई प्रमुख त्योहारों का आयोजन होता है:
- चैत्र नवरात्रि: मार्च और अप्रैल में 10 दिनों का भव्य मेला
- सावन अष्टमी: जुलाई और अगस्त में 10 दिनों का मेला
- आश्विन नवरात्रि: अक्टूबर में 10 दिनों का मेला
- नववर्ष उत्सव: 28 दिसंबर से 2 जनवरी तक विशेष उत्सव
इन त्योहारों के दौरान, मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और एक भव्य भक्तिमय वातावरण बनता है।
माँ चिंतपूर्णी की आरती और यात्रा की जानकारी
माँ चिंतपूर्णी की आरती और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है। आप सड़क, रेल, या हवाई मार्ग से मंदिर तक पहुँच सकते हैं, और यात्रा की जानकारी निचे दिए गए लिंक में मिल जाएगी।
माँ चिंतपूर्णी का यह पवित्र स्थल भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है, जहाँ भक्ति, शांति और दिव्यता का अनूठा संगम होता है।