कैसे करें श्रीखंड महादेव की यात्रा ?

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दोस्तों, चाहे वो कैलाश मानसरोवर हो या अमरनाथ, इन यात्राओं को पूरा करना आसान नहीं है। हर साल हज़ारों भक्त महादेव के दर्शन के लिए यहाँ पहुंचते हैं। लेकिन एक ऐसी जगह भी है जो इन दोनों से भी अधिक चुनौतीपूर्ण मानी जाती है—हम बात कर रहे हैं श्रीखंड महादेव की।

आपने श्रीखंड महादेव का नाम तो जरूर सुना होगा। अगर आप यहाँ जाने का विचार कर रहे हैं, तो हम आपके लिए श्रीखंड की कुछ रहस्यमयी कहानियाँ लेकर आए हैं, जो आपको ज़रूर जाननी चाहिए। इन कहानियों से न केवल आपकी भगवान शिव के प्रति आस्था और मजबूत होगी, बल्कि आपको इस पवित्र स्थल के इतिहास और महत्व को भी समझने में मदद मिलेगी।

जैसे कि श्रीखंड महादेव स्थल का अस्तित्व कैसे हुआ? श्रीखंड का नाम श्रीखंड क्यों पड़ा? और क्या आप जानते हैं श्रीखंड के रास्ते में आने वाले पर्वती बाग की कहानी? इसका पांडवों और रावण से क्या संबंध है? चलिए, हम इन सब रहस्यों पर एक-एक कर से परत खोलते हैं।

श्रीखंड महादेव, पंचकैलाश में से एक है। पंचकैलाश की बात करें तो, हिमालय में अलग-अलग स्थानों पर स्थित पाँच प्रमुख चोटियों में श्रीखंड तीसरी सबसे महत्वपूर्ण चोटी है। इसके अलावा, पंचकैलाश में कैलाश पर्वत, आदि कैलाश, किन्नौर कैलाश, और मणिमहेश कैलाश भी शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में 18,570 फीट की ऊंचाई पर स्थित, श्रीखंड महादेव एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पौराणिक स्थल है। यह स्थान अपनी रहस्यमयी कहानियों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

श्रद्धालुओं का मानना है कि श्रीखंड महादेव भगवान शिव का निवास स्थान है। यहाँ पर स्थित विशाल शिवलिंग, जो लगभग 72 फीट ऊँचा है, को देखने और पूजा करने के लिए हर साल सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु यहाँ कठिन यात्रा करके पहुँचते हैं।

श्रीखंड महादेव की यात्रा को बहुत कठिन माना जाता है। यह लगभग 32 किलोमीटर लंबी यात्रा है, जिसमें तीव्र चढ़ाई, ग्लेशियर, और बर्फीले रास्तों से गुजरना पड़ता है। इस यात्रा को पूरा करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है।

यात्रा के दौरान आपको अद्वितीय प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं—बर्फ से ढके पहाड़, घने जंगल, और खूबसूरत ग्लेशियर। यहाँ के दुर्गम रास्तों के साथ-साथ प्रकृति के अद्भुत नज़ारे भी मनमोहक हैं। कभी आप झरनों के पास से गुजरते हैं, कभी पहाड़ों और वनस्पति का दृश्य बदलता है, और कभी ऐसा लगता है जैसे आप बादलों के ऊपर चल रहे हों। यह यात्रा आपको एक अलग ही दुनिया का अनुभव कराएगी, जो प्रकृति के बहुत करीब है। ऐसा लगेगा मानो भोले बाबा ने प्रकृति के रहस्यों को आपकी इस यात्रा में आपके सामने उजागर कर दिया हो।

कैसे आये श्रीखंड महादेव में  अस्तित्व में

चलिए पहले बात करते हैं कि श्रीखंड अस्तित्व में कैसे आया। इस स्थान के बारे में कई रहस्यमय कहानियाँ प्रचलित हैं।

एक समय की बात है, भस्मासुर नाम का एक राक्षस था। उसने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा। भस्मासुर ने वरदान में माँगा कि जिसके सर पर भी वो अपना हाथ रखेगा , वह भस्म हो जाएगा। भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया।

वरदान पाकर भस्मासुर बहुत अहंकारी हो गया। उसने सोचा कि वह भगवान शिव को ही भस्म करके उनकी शक्ति प्राप्त कर लेगा। वह भगवान शिव की ओर बढ़ने लगा। यह देखकर भगवान शिव चिंतित हो गए और अपनी रक्षा के लिए हिमालय की और चले गए और देवढ़ांक  स्थान पर एक गुफा में अंतरध्यान हो गए |

कहा जाता है कि भगवान शिव सूक्ष्म रूप में देवढ़ांक से होते हुए श्रीखंड पर्वत पर प्रकट हुए और एक विशाल पत्थर के रूप में समाधि में लीन हो गए। भस्मासुर भगवान शिव का पीछा करते हुए श्रीखंड तक पहुंच गया। जब भगवान विष्णु को यह बात पता चली, तो भगवान विष्णु ने अपनी माया से मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप को देखकर भस्मासुर मोहित हो गया। मोहिनी ने भस्मासुर से कहा कि अगर वह उसके साथ नृत्य करेगा तो वह उससे विवाह कर लेगी।

भस्मासुर ने मोहिनी के साथ नृत्य करना शुरू किया। नृत्य करते-करते मोहिनी ने ऐसा हाथ का इशारा किया जिससे भस्मासुर को अपने ही सिर पर हाथ रखना पड़ा। जैसे ही उसने अपने सिर पर हाथ रखा, वह तुरंत भस्म हो गया।

इसके बाद इसी पर्वत पर माता पार्वती, गणेश जी, और कार्तिकेय जी ने घोर तपस्या की, तब भगवान शंकर अपनी पाषाण समाधि को तोड़कर बाहर आए।

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपनी त्रिशूल का उपयोग करके गुफा में एक दरार बनाई और उस दरार के माध्यम से बाहर निकल गए। इस दरार के कारण गुफा में एक महत्वपूर्ण भौगोलिक परिवर्तन आया, जिसे आज भी श्रीखंड महादेव की गुफा के रूप में देखा जा सकता है और श्रीखंड महादेव की गुफा में दरार से ही श्रीखंड शिवलिंग का निर्माण हुआ था।

अगर श्रीखंड में इस शिवलिंग की बात करें, तो इसमें एक दरार है, जो लिंग के मध्य भाग में तिरछी दिशा में है। इस खंडनुमा दरार में श्रद्धालु गुप्त भेंटें जैसे सिक्के अर्पित करते हैं। इस दरार में न जाने कितनी भेंटें समा चुकी हैं, पर यह दरार कभी भरती नहीं है।

प्राचीन मान्यता है कि लंकापति रावण प्रतिदिन शिव पूजा के लिए श्रीखंड (कैलाश) आता था और भक्ति भाव से अपना सिर महादेव को भेंट में अर्पित करता था। इसी कारण इस स्थल का नाम सिर खंडन हुआ, जो अब श्रीखंड के नाम से जाना जाता है।

श्रीखंड महादेव जाने का रास्ता और रास्ते में आने वाले धार्मिक व् पवित्र स्थल।  

जाओ गांव

दोस्तों, अगर आप भी श्रीखंड यात्रा पर जा रहे हैं, तो जान लीजिए कि यह यात्रा कुल्लू के निरमंड, जो रामपुर बुशहर के नज़दीक है, के  जाओ गांव से शुरू होती है। यहाँ से 3 किलोमीटर बाद आप सिंगाढ़ पहुँचते हैं। सिंगाढ़ के बाद बराटीनाला आता है, जहाँ दो छोटी नदियों (कुरपन और बराटी) का संगम होता है। ये दोनों नाले श्रीखंड की चोटियों से उत्पन्न होते हैं। यहाँ आपको कई पेड़ मिलेंगे और गैरछाड़ू देवता का दूसरा मंदिर भी यहीं है, साथ ही महादेव की मूर्ति भी विराजमान है।

बराटीनाला से थाचड़ू

श्रीखंड कैलाश की पहली चढ़ाई शुरू होती है। इस चढ़ाई को कैलाश यात्रा की सबसे कठिन और सबसे महत्वपूर्ण चढ़ाई माना जाता है। इस प्रथम चढ़ाई में कैलाश यात्रियों की कड़ी परीक्षा हो जाती है। यह सीधी चढ़ाई बराटीनाला से शुरू होती है, जिसे डंडीधार के नाम से जाना जाता है। इस कठिन चढ़ाई को पार करने के लिए यात्री डंडे का सहारा लेते हैं, जिस कारण इसे डंडीधार कहा जाता है। 

बराटीनाला से कुछ समय चलने पर कुम्भा द्वार आता है, इसके बाद थाती बील आता है, जो कई देवी-देवताओं का विश्राम स्थल रहा है।

थाचड़ू

थाचड़ू जो समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊँचाई पर है। यहाँ से निकलने के बाद वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और आप भेड़पालकों को अपने टेंट के आसपास भेड़ चराते हुए देख सकते हैं। जून से अगस्त तक घाटी में हरी-भरी घास की भरमार रहती है, और यह समय भेड़-बकरी चराने वालों के लिए अपने पशुधन को भरपूर आहार देने का होता है।

कालीटॉप

इसके बाद कालीटॉप पहुँचते हैं, इस स्थान को कालीटॉप इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ काली माता की पूजा होती है और यहां  पहुँचने के बाद प्रकृति की पवित्रता व् सुंदरता महसूस होने लगती है 

कई यात्री जो पहाड़ों की यात्राओं के अभ्यस्त नहीं होते या शारीरिक व् मानसिक अस्वस्था के कारण  कैलाश यात्रा के पहले चरण में ही  हार मान जाते है और यात्रा को पूरा नहीं कर पाते, वह यात्री थाचडू या कालीघाटी से श्रीखंड कैलाश के दर्शन कर लौट जाते है ।

भीम तालाई

कालीटॉप के बाद  यात्रा के दौरान अगला महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल भीम तालाई आता है । भीम तालाई का संबंध भी महाभारत के भीम से है।  यहां  की कहानी इस प्रकार मानी जाती है की 

कहा जाता है कि जब पांडव वनवास के दौरान हिमालय में यात्रा कर रहे थे, तो इस क्षेत्र में भी आए थे। भीम ने अपने विशालकाय शरीर और शक्ति का उपयोग कर इस स्थान पर एक तालाब का निर्माण किया। उन्होंने भूमि पर प्रहार किया, जिससे पानी का एक स्रोत उत्पन्न हुआ और यहाँ एक तालाब बन गया, और यह भीम स्नान किया करते थे जिसे भीम तालाई कहा जाता है।

भीम द्वार

फिर आप कुंशा से होते हुए भीम द्वार पहुँचते हैं।  

भीम द्वार एक खुली घाटी है, जिसे पांडव भीम का निवास स्थान माना जाता है। इसी स्थान पर भीम ने महादेव की तपस्या की थी। भीम द्वार में भीम एक बड़ी शिला के नीचे रहते थे, जिसे यहां की स्थानीय भाषा में ड्वार कहते हैं। ड्वार एक बड़े पत्थर के नीचे कमरे जैसा खोल होता है, जिसे पहाड़ों में प्राकृतिक सराय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मान्यता है कि इसी स्थान पर भीम ने बकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी कारण इस स्थान की मिट्टी का रंग आज भी लाल है।

पार्वती बाग़

भीम द्वार से धीरे-धीरे आप आगे बढ़ते हैं और पार्वती बाग पहुँचते हैं। पार्वती बाग, जहाँ माता पार्वती का फूलों का बगीचा है, जिसकी महक से आप खिल उठते हैं।

जब आप श्रीखंड ट्रैक पर चल रहे होते हैं तो आपको जगह-जगह चट्टानें और कुछ ऐसे स्थान भी मिलते हैं जहाँ घास का एक तिनका भी नहीं है। कुछ किलोमीटर और चलने के बाद आप अचानक फूलों के एक मैदान में पहुँच जाते हैं जहाँ ब्रह्म कमल के सैकड़ों फूल चट्टानों के बीच खिलखिलाते हुए नजर आते हैं। 

ब्रह्म कमल देवी पार्वती का पसंदीदा फूल है, और वे यहाँ किसी कारण से ही हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर माता पार्वती ने भगवान शिव का प्रेम पाने के लिए 18,000 वर्षों तक प्रतीक्षा की थी, जो श्रीखंड के शिखर पर ध्यान मग्न थे और उनकी उपस्थिति से अनजान थे। उनकी अकेलेपन और पीड़ा को समझते हुए, ब्रह्म कमल स्वतः ही उनके चारों ओर खिल उठे ताकि उन्हें साथ और खुशी मिल सके। यह फूल निश्चित रूप से इस वीरान इलाके में खुश करने वाला दृश्य प्रदान करते हैं, जिससे शेष 2,000 फीट की चढ़ाई के लिए नई ऊर्जा मिलती है।

नैंसरोवर

इसके बाद आपको नैनसरोवर के दर्शन होते हैं। यहाँ आपको एक ऐसी झील के दर्शन होंगे जिसे माना जाता है कि यह झील माता पार्वती के आँसुओं से बनी है जब वे भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रही थीं। 

यात्री नैनसरोवर पहुँचकर सरोवर के जल से अपने तन-मन को पवित्र करते हैं और सरोवर के पवित्र जल को साथ लेकर महादेव के अभिषेक हेतु कैलाश की ओर बढ़ते हैं।

भीमबही

नैनसरोवर से सीधे ग्लेशियर की चढ़ाई चढ़ते हुए, श्रीखंड महादेव शिवलिंग से कुछ दूरी पहले आपको भारी पत्थरों से भरा एक रास्ता मिलता है। इस स्थान को भीम-बही या भीम पौड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर आपको विशाल आयताकार पत्थर मिलेंगे, जिन्हें प्राचीन लिपि में तराशा गया है। इसे पाण्डु लिपि भी कहा जाता है। यह स्थल महायोद्धा भीम के नाम से जाना जाता है, और यहाँ पाण्डव भीम द्वारा तराशे गए विशालकाय आयताकार पत्थर पाए जाते हैं, जिन्हें भीम का भोजा माना जाता है।

 ‘बही’ शब्द का तात्पर्य यहाँ भोजा से है। इन विशाल पत्थरों में पाण्डुलिपि के प्रतीक मिलते हैं, और पत्थरों की परत थाली के आकार की तरह बनाई गई है। इन भारी पत्थरों को यहाँ लाना और तराशना केवल महाबली पाण्डु भीम का ही कार्य माना जा सकता है। पुरानी कहानियों के अनुसार, भीम यहाँ से स्वर्ग के लिए सीढ़ियों का निर्माण करना चाहते थे, लेकिन समय की बाधा के कारण यह कार्य पूरा नहीं हो पाया था।

भीम-बही से कुछ देर चलने के बाद आपको श्रीखंड महादेव के दर्शन होते हैं। यहाँ पर महादेव को शिला रूप में पूजा जाता है। महादेव के साथ यहाँ माता पार्वती, गणेश भगवान, और कुछ दूरी पर कार्तिकेय महाराज भी शिला रूप में विद्यमान हैं।

श्रीखंड यात्रा एक अद्भुत एहसास है, जो भोले बाबा के दर्शन होते ही शरीर की सारी थकान और रास्ते की कठिनाइयों को भुला देता है और आपको एक नई ऊर्जा से भर देता है। श्रीखंड का यह नज़ारा आपको भोले बाबा के इस अद्भुत कैलाश के साम्राज्य का एहसास दिलाता है और आपके उनके प्रति इस अटूट प्रेम को और बढ़ा देता है।

कैसे करें श्रीखंड महादेव की यात्रा? (How to Reach Shrikhand Mahadev?)

श्रीखंड कैलाश यात्रा को सभी कैलाश यात्राओं में से सबसे कठिन माना जाता है  इसलिए इस यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रीखंड सेवा समिति का  निर्माण किया गया है | श्रीखंड महादेव की यात्रा हर वर्ष जुलाई माह में की जाती है, आधिकारिक तौर पर यह सावन के प्रथम सोमवार को महादेव की छड़ी को कैलाश के लिए रवाना कर , शुरू होती है | यह यात्रा लगभग 2-3 सप्ताह तक चलती है  यात्रा से पहले स्थानीय प्रशासन से परमिट प्राप्त करें और अपनी शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दें, क्योंकि यह यात्रा कठिन है। गर्म कपड़े, ट्रेकिंग शूज, मेडिसिन, और पर्याप्त भोजन-पानी साथ रखना आवश्यक है।

यात्रा की शुरुआत निर्धारित स्थान से करें। यात्रा के दौरान मार्गदर्शन के लिए एक स्थानीय गाइड को साथ लें, जो क्षेत्र के बारे में अच्छी जानकारी रखता हो। यात्रा में कई कठिनाइयाँ आ सकती हैं, इसलिए मौसम और अन्य आपात स्थितियों के लिए भी  हमेशा तैयार रहें।

धार्मिक लाभ

अगर हम यहाँ के पत्थरों और भूवैज्ञानिक संरचनाओं की बात करें तो श्रीखंड महादेव के पत्थरों और चट्टानों की भूवैज्ञानिक संरचना हिमालय की टेक्टोनिक और मेटामॉर्फिक प्रक्रियाओं का परिणाम है। 

यहाँ की चट्टानों में स्फटिक, ग्रेनाइट और मेटामॉर्फिक चट्टानें प्रमुखता से पाई जाती हैं। इन चट्टानों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी अत्यंत उच्च है, जो हजारों श्रद्धालुओं को इस पवित्र स्थान की ओर आकर्षित करता है। श्रीखंड महादेव की यात्रा एक भूवैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

श्रीखंड महादेव यात्रा को भगवान शिव के दर्शन करने का एक महान अवसर माना जाता है। यह यात्रा श्रद्धालुओं को गहरा आध्यात्मिक अनुभव और मानसिक शांति प्रदान करती है।

इस पवित्र यात्रा को करने से श्रद्धालुओं को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और उनके पापों का नाश होता है।

  

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